Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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१२ कदाच थोड़ी तसु बदलै
न
१३ ढाळ मांहि
जय गणि तिण
१४
१५
१६
आय,
लेवाय,
विस्तार, भिक्षु
अनुसार,
ए
२०
पाव-पाव
अधिक भोगवै
पहिछांण,
१७ पंच आदि
२३
'उपवास त पारणै बीजा बोल कह्या
त
छठ अठम दशम बीजा बोल कह्या
मोटी
खाजा
सीरादिक
कृत
कहिवाय ।
बताय ॥
पारण, षट पइसा भर घी ताय । इतराइज, गणपति कहै ते न्याय ॥ तपसारे, पारण एम कही। आठ पइसा भर घृत आख्यो, बीजा बोल उतराइज ॥
सोरठा
न्याय
१. २. लयः सीता आवै रे धर राग
४२
तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
सांकुली नीं विगय | अति घृत तणीं ॥ मर्याद 1 सोरठिया में कह्यो ।
दोनूं
इ जु जुई।
त ते बीजे दिन नहीं ।
१८ आख्यो भिक्खू
एम, बीजा बोल घृत बधायो तेम, बीजा बोल न १९ भारीमाल ऋषराय, जय गणी नीं गणपति आणा मांय, दोष कोई
घी
च्यार, पइसा भर उतराइज, गणपति रहिस
नै
घृत खाय ।
ए
निरमळ न्याय | मर्यादा शुद्ध जाण ।
पचखांण ॥
कदा टका भर सेती अधिको, जाणी तो दूजै दिन घृत न खाणो, छै २१ और दूध दही सुंखड़ियादिक नी, अधिक लिया दूजै दिन तेही, विगय तणा २२ दोय त्रिण दिन लगै कदाचित, जो सपी न खाधो होय | तो चार पइसा भर घृत लेणो, निमळ चित्त सुजोय ॥ अधेला तथा पइसा भर थी, वधै बांटतां ताहि। तो एकण नै देणो उरो, दू २४ आहार कदा नहीं मिलियक रो खांडगुळादिक अधिक लेण रो, नहीं
दिन देणो नाहिं ||
मिलियां जोग ।
घी
अटकाव प्रयोग
।
उतरा
अछै।
बधारणा ॥
पिण आण ए ।
मत जाणजो ॥