Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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सुचरित्रम्
अर्थों में पतन की ओर भी लुढ़कना हुआ है तो इसमें दोष ऐसे चरित्रनिष्ठ पुरुषों का नहीं, बल्कि उन चरित्रहीन मनुष्यों का है, जिन्होंने उन सार्वजनिक उपलब्धियों का दुरुपयोग अपने सत्ता एवं सम्पत्ति के स्वार्थों को पूरा करने के लिए किया। दूसरे शब्दों में यह कहें कि मनुष्य की दुष्प्रवृत्तियाँ ही इस दुरुपयोग के लिए जिम्मेदार रही हैं। ___ अब जब चरित्र निर्माण के लिए प्रयास प्रारम्भ किए जावें तो इन सारे अनुभवों को सामने रखना होगा और संसार की नैतिकता का इतना न्यूनतम स्तर तो बनाना ही होगा कि मानवहितकारी उपलब्धियों का दुष्प्रयोग कतई न हो सके। इस प्रकार की दुष्ट वृत्तियों एवं प्रवृत्तियों को घटाने तथा मिटाने के लिए ही तो चरित्र-निर्माण के अभियान की आवश्यकता है। सच्ची उपलब्धियाँ वे ही हैं जो ज्ञान-विज्ञान के नए द्वार खोलती हैं :
यह सही है कि जिज्ञासा ही साहसिक बनकर साधना व शोध के बल पर दुर्लभ रहस्यों की परतों को चीरती है और उपलब्धियों के जगहितकारी माध्यम प्रस्तुत करती है, किन्तु प्रत्येक जिज्ञासा सही हो और सही साहस ही दिखावे-यह जरूरी नहीं। यह भी जरूरी नहीं कि सही उपलब्धियाँ ही सामने आवे और तदनन्तर उनका सही प्रयोग ही किया जाए। किसी भी साधक या शोधक के मनोभाव तथा संस्कार महत्त्वपूर्ण होते हैं। यदि वह भीतर से अपने उद्देश्य के प्रति ईमानदार नहीं हुआ या घातक उद्देश्य को छिपाए रहा तो वह सही साधन का भी दुरुपयोग ही होगा-फिर उपलब्धि के सही प्रयोग का तो प्रश्न ही नहीं। छोटी-सी तकली सूत कातने का साधन होती है जिससे कातने वाले को रोजी मिलती है यानी कि यह लाभकारी साधन होता है। अब इस सही साधन को भी कोई दुष्ट व्यक्ति सामने वाले की आंख में घोंप (घुसेड़) कर उसे अंधा बना दे तो क्या तकली को दोष दिया जा सकता है? दोष होता है मनुष्य की प्रकृति और प्रवृत्ति का।
इस संदर्भ में चरित्र-निर्माण की महत्ता आंकी जानी चाहिये। एक सज्जन व्यक्ति घातक साधन का भी सदुपयोग ही करता है। तलवार से वह किसी को मारता नहीं, बल्कि अशक्तों की रक्षा ही करता है। व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो चरित्र निर्माण का अभिन्न महत्त्व है। चरित्र है तो कहीं किसी भी साधन के दुरुपयोग तथा मानवीय अहित की आशंका नहीं और चरित्र नहीं तो तकली से भी आंखें ही फोड़ी जाती है। इससे यह प्रमाणित होता है कि सृष्टि बुरी नहीं, मनुष्य की दृष्टि ही बुरी है जो चरित्र निर्माण के अभाव में संसार को ज्यादा से ज्यादा बुरा बनाती ही जाती है। अत: चरित्रनिर्माण की सभी संभावनाओं पर आज डट कर काम करने की जरूरत है।
चारित्रिक दृष्टिकोण के अनुसार सच्ची उपलब्धियाँ वे ही मानी जाएगी जो सर्वहित में ज्ञानविज्ञान के नए द्वार खोलती है और इस संसार को श्रेष्ठतर बनाने की कोशिशों में जुड़ती है। उपलब्धि चाहे सैद्धान्तिक, दार्शनिक या वैचारिक हो (यानी कि आध्यात्मिक अथवा पदार्थ व व्यवस्थागत और व्यावहारिक हो यानी कि भौतिक) सबका उद्देश्य संसारहित ही होना चाहिये, जिसमें प्रत्येक मानव एवं प्राणी का हित समाया हुआ हो। इन उपलब्धियों के प्रभाव से संसार के वातावरण में सर्व सुरक्षा एवं सर्व सहयोग का सद्भाव प्रसारित होना चाहिये।
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