________________
श्रीमद् गोपीजनवल्लभाय नमः श्रीमदाचार्य चरण कमलेभ्यो नमः
अणुभाष्य अधिकरण सारावली
(श्री निर्भय राम भट्ट)
प्रथम अध्याय
इस अध्याय में स्वरूप बोधक वाक्यों पर विचार किया है। ऐसे वाक्य संदिग्ध और असंदिग्ध दो प्रकार के हैं। असंदिग्ध वाक्यों का निर्णय अपेक्षित नहीं था अतः उन पर विचार नहीं किया । कार्य प्रतिपादक, आन्तर्यामि प्रति पादक उपस्य प्रतिपादक और प्रकीणं इत्यादि चार प्रकार के संदिग्ध वाक्यों पर ही क्रमशः प्रथम अध्याय के चारों पादों में विचार करते हैं ।
द्वितीय अध्याय
इस अध्याय के प्रथम पाद में श्रुति स्मृति वाक्यों का अविरोध निर्णय तथा द्वितीय पाद में सांख्य, योग, न्याय, मायावाद, वाह्यार्थानुमेय आदि वादों का स्वतन्त्र रूप से निराकरण किया गया है। तृतीय पाद में श्रुति वाक्यों के परस्पर विरोध का परिहार तथा चतुर्थ पाद में जीव शरीर के मध्यवर्ती प्राण आदि पर विचार किया है ।
तृतीत अध्याय
इस अध्याय के प्रथमपाद में, ब्रह्मज्ञानोपयोगी मानकर जीव के जन्म पर विचार किया है । द्वितीयपाद में जीव की मुक्तियोग्यता और विरोध परिहार पूर्वक ब्रह्मस्वरूप निरूपण किया है । तृतीय चतुर्थ पाद में गुणोपसंहार तथा कर्माद्य विचार है ।
चतुर्थ अध्याय
इस अध्याय के प्रथमपाद में भगवश्राप्ति के श्रवण आदि साधनों का कर्तव्य रूप से विचार किया गया है। द्वितीय पाद में म्रियमाण प्राणी के सर्बेन्द्रियलय आदि का विचार है । तृतीय पाद में क्रममुक्ति आदि मार्गों का तथा