________________
( २३ ) सूत्रकार 'परिणामात' विशेषण प्रस्तुत करते है, अर्थात् कारण ही कार्य रूप में परिणत होता है जैसे कि सुवर्ण अविकृत रूप से परिणत होता है।"
(७) कार्यकारणतादात्म्यवाद : क्योंकि कारण, कार्य के रूप में विना विकृत हुए ही परिणत होता है इसलिए कार्य, कारणात्मक है एवं कारण कार्यात्मक है, यही कारण का तादात्म्य सम्बन्ध है। इसे ही आचार्य चरण, शुद्धाद्वत कहते हैं।
"तदेतत् त्रयं सदेकमयमात्मात्मो एकः सन्नेतत् त्रयम्" (६० १६) इस श्रु तिको शुद्धाद्वैत वाद में प्रस्तुत किया जाता है। आचार्य चरण ब्रह्मसूत्र के तद्नन्यत्वाधिकरण में कहते हैं "कार्यस्य कारणानन्यत्वम्", अर्थात् कार्य की कारण से अनन्यता स्वाभावाविक है (अणु० भा० २।१।१४) ___ इसके अतिरिक्त जीव का अणु होना या ऐसे अनेक विचारों का शुद्धाद्वैत से उतना सम्बन्ध नहीं है, अतः उनका उल्लेख करना अनावश्यक है निबन्ध का अनपेक्षित विस्तार व्यर्थ है। __ शुद्धाद्वैत के प्रतिपादक ग्रन्थ श्रीमद् वल्लभाचार्य विरचित अणुभाष्य को लोक भाषा में अनूदित कर जगद्गुरु श्री निम्बार्काचार्य पीठ प्रयाग के आचार्यत्व को चरितार्थ करने वाले गोस्वामी ललितकृष्ण जी महाराज ने वैष्णवों पर बड़ा उपकार किया है। गोस्वामी जी ने वैष्णवों के राभी भाष्यों को लोकभाषा में समान भाव से आदर देते हुए निष्पक्ष और निरपेक्ष भाव से उपस्थित कर उन आचार्य चरणों की लीला को पुनः प्रकाशित कर भक्तों को प्रकाम दिया है, एतदर्थ सभी संप्रदायों के प्रणम्य श्रद्धेयास्पद हैं।
प्रातः स्मरणीय पूज्य दादाजी महाराज (गोस्वामी दीक्षित जी) के विचारों को संकलित कर ग्रन्थ के उपोदघात के रूप में भक्तों के उपकारार्थ प्रस्तुत कर रहा है, यह समस्त चिन्तन मौलिक रूप से उन्हीं का है. मैं तो आचार्य के अभिन्न निज सचिव माधव भट्ट जी की तरह लेखनो से गुम्फित कर रहा है ।
निवेदक बम्बई
गोस्वामी श्याम