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मानव जीवन का महत्त्व
प्राणी को देखकर द्रवित हो उठता है एवं उसकी सहायता के लिए तन, मन, धन सब लुटाने को तैयार हो जाता है, वह मृत्यु के पश्चात् मनुष्य जन्म पाने का अधिकारी होता है।" ___ ऊँचा विचार और ऊँचा आचरण ही मानव जन्म की पृष्ठ भूमि है । यहाँ जो कुछ भी बताया गया है, वह अन्दर के जीवन की पवित्रता का भाव ही बताया गया है। किसी भी प्रकार के साम्प्रदायिक क्रियाकाण्ड और रीति-रिवाज का उल्लेख तक नहीं किया है। भगवान् महावीर का आशय केवल इतना है कि तुम्हें मनुष्य बनने के लिए किसी सम्प्रदाय-विशेष के विधि-विधानों एवं क्रियाकाण्डों की शर्त नहीं पूरी करनी है। तुम्हें तो अपने अन्दर के जीवन में मात्र सरलता, विनयशीलता, अमात्सर्य भाव एवं दयाभाव की सुगन्ध भरनी है। जो भी प्राणी ऐसा कर सकेगा, वह अवश्य ही मनुष्य बन सकेगा। । परन्तु श्राप जानते हैं, यह काम सहज नहीं है , तलवार की धार पर नंगे पैरों नाचने से भी कहीं अधिक दुर्गम है यह मानवता का मार्ग ! जीवन के विकारों से लड़ना, कुछ हसी खेल नहीं है। अपने मन को मार कर ही ऐसा किया जा सकता है। तभी तो हमारा कवि कहता है कि:
"फरिश्ते से बढ़कर है इन्सान बनना; मगर इसमें पड़ती है मेहनत ज़ियादा ।"
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