Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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मूडबिद्रीकी ताडपत्रीय प्रतियोंके मिलानका निष्कर्ष भागका विषय बहुत कुछ सूक्ष्म है, अतएव यहांके स्खलन बड़े ही गंभीर विचारके पश्चात् ध्यानमें आसके और उनका पाठ धवलाकारकी शैलीमें ही बड़े विचारके साथ रखना पड़ा। ऐसे पाठ प्रस्तुत भाग में १९ हैं । हमें यह प्रकट करते हुए हर्ष होता है कि मूडबिद्रीके मिलानसे इन पाठोंमें के १२ पाठ जैसे हमने रखे हैं वैसे ही शब्दश: ताडपत्रीय प्रतियोंमें पाये गये । एक पाठमें हमारे रखे हुए 'खवगा' के स्थानपर ' बंधगा' पाठ आया है, किन्तु विचार करनेपर यह अशुद्ध प्रतीत होता है, वहां 'खवगा' ही चाहिये। शेष ६ पाठ मूडबिद्रीकी प्रतिमें नहीं पाये गये । किन्तु वे पाठ अशुद्ध फिर भी नहीं हैं। यथार्थतः वहां अर्थकी दृष्टिसे वही अभिप्राय पूर्वापर प्रसंगसे लेना पड़ता है। धवलाकारकी अन्यत्र शैलीपरसे ही वे पाठ निहित किये गये हैं।
१ देखो पृष्ठ २६४, ३५४, ३८३, ३८४, ३९२, ४१२, ४२४, ४३५, ४४४, ४५१. २ देखो पृष्ठ ४८६. ३ देखो पृष्ठ ६१,२४८, ३४८, ३५३, ४४०.
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