Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१,२, ४२. ]
दव्यमाणागमे मणुसगदिपमाणपरूवणं
[ २४९
आगच्छदि । तस्स भागहारस्त अद्धच्छेरणयमेत्ते घणाघगंगुलरूप अद्धच्छेदगए कदे वि मणुसमिच्छाइट्ठिअवहारकालो आगच्छदि । सूचि अंगुल -घणंगुल पढ मवग्गमूल-घणाघणंगुलविदियवग्गमूलाणं असंखे जदिभाएण भागहारेण गहिदगहिदो गहिदगुणगारो च साहेयव्वो । एदेण भागहारेण जगसेढिम्हि भाग हिदे रूत्राहिओ मणुसरासी आगच्छदि । तं कथं जाणिअदिति बुत्ते ' मणुसगईए मणुमेहि रूवं पक्खितएहि सेढी अवहिरदि अंगुलवग्गमूलं तदियवग्गमूलगुणिदेण' इदि खुद्द बंधसुत्तादो। एत्थ रासी दुविहा भवदि, ओजं जुम्म चेदि । ओजं दुहिं, तेजोजं कलिओजं चेदि । तं जहा - जम्हि रासिम्हि चदुहि अवहिरिज्जमाणे तिणि ट्ठांति सो तेजोजं । चदुहि अवहिरिज्जमाणे जम्हि एगं ठादि सं कलिओजं । जुम्मं दुविहं, कदजुम्मं बादरजुम्मं चेदि । तं जहा- चदुहि अवहिरिज्जमाणे जम्हि सिम्हि चत्तारि द्वांति तं कदजुम्मं । जम्हि रासिम्हि दोण्णि हांति तं बादरजुम्मं । जम्हा मणुस्सरासी तेजोजं तम्हा लद्धम्हि कदजुम्मम्हि एगरूवमवणेयव्वं । अवसेसिद
I
हारकाल आता है । उक्त भागहारके जितने अर्धच्छेद हों उतनीवार उक्त भज्यमान राशि घनाघनांगुलके अर्धच्छेद करने पर भी मनुष्य मिथ्यादृष्टि अवहारकाल आता है । सूच्यंगुलके असंख्यातवें भागरूप, घनांगुल के प्रथम वर्गमूलके असंख्यातवें भागरूप और घनाघनांगुलके द्वितीय वर्गमूलके असंख्यातवें भागरूप भागहारले गृहीतगृहीत और गृहीतगुणकारको साध लेना चाहिये ।
उक्त भागद्दारले जगश्रेणीके भाजित करने पर एक अधिक मनुष्यराशि आती है । यह कैसे जाना जाता है, ऐसा पूछने पर आचार्य उत्तर देते हैं कि 'मनुष्यगतिमें सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलसे सूच्यंगुलके तृतीय वर्गमूलको गुणित करके जो लब्ध आवे उसे शलाकाराशि करके एक अधिक मनुष्य जीवोंके द्वारा जगश्रेणी अपहृत होती है, अर्थात् एक अधिक मनुष्यराशिको जगश्रेणी में से घटाते जाना चाहिये और शलाकाराशिमेंसे उत्तरोत्तर एक कम करते जाना चाहिये। इसप्रकार करने से शलाकाराशिके साथ जगश्रेणी समाप्त हो जाती है'। इस खुदाबंधके सूत्रसे जाना जाता है कि उक्त भागहारसे जगश्रेणीके अपहृत करने पर एक अधिक मनुष्य राशि लब्ध आती है ।
राशि दो प्रकारकी है, ओजराशि और युग्मराशि । उनमेंसे ओजराशि दो प्रकारकी है, तेजोज और कलिओज । आगे इन्हींका स्पष्टीकरण करते हैं- जिस राशिको खारसे भाजित करने पर तीन शेष रहते हैं वह तेजोजराशि है । जिस राशिको चारसे भाजित करने पर एक शेष रहता है वह कलिओजराशि है । युग्मराशि दो प्रकारकी है, कृतयुग्म और बादरयुग्म । आगे उसी युग्मराशिके भेदोंका स्पष्टीकरण करते हैं- जिस राशिको चार से भजित करने पर चार शेष रहते हैं अर्थात् जिसमें चारका पूरा भाग जाता है वह कृतयुग्मराशि है । तथा चारले. भाजित करने पर जिस राशिमें दो शेष रहते हैं वह बादरयुग्मराशि है । प्रकृतमें क्योंकि मनुष्यराशि तेजोजरूप है, इसलिये जगश्रेणीमें सूच्यंगुलके प्रथम
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