Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३२.] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, २, ८६. बहुभागा असंजदसम्माइट्ठी होति । एवं यवं जाव अजोगिकेवलि ति। अहवा एइंदियाणं भागाभागो एवं वा वत्तव्यो । सव्येइंदियरासी अद्धद्धण छेत्तव्यो जाव बादरेइंदियरासी अवचिट्टिदो त्ति । तत्थ लद्धअद्धच्छेदणयसलागा विरलेऊण विगं काऊण अण्णोण्णभासे कदे असंखेज्जलोगमेत्तरासी उप्पज्जदि । एस रासिं विरलेऊण एकेकस्स रुवस्स सव्वमेइंदियरासि समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि बादरेइंदियाणं पमाणं पावेदि । तत्थ बहुखंडा सुहुमेइंदिया एयखंडं बादरेइंदिया। पुणो सुहुमेइंदियरासी अद्धद्धेण छिदिदव्यो जाव सुहुमेइंदियअपज्जत्तरासी अवचिट्ठिदो त्ति । तत्थ अद्धच्छेदणए विरलिय विगं करिय अण्णोण्णब्भासकरणेणुप्पण्णसंखेज्जरासिं विरलेऊण एकेकस्स रूवस्स सुहुमेइंदियरासिं समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि सुहुमेइंदियअपज्जत्तरासी पावुणदि । तत्थ बहुखंडा सुहुमेइंदियपञ्जत्ता एयखंडं तेसिमपज्जत्ता होति । एवं बादरेइंदियाणं पि वत्त । एत्थ संदिट्ठी । तं जहा- एइंदियरासी वेछप्पण्णसदमेत्तो २५६ । सुहुमेइंदियरासी चालीसब्भहियवेसयमेत्तो
हुई पल्योपमके असंख्यातवें भागरूप राशिके असंख्यात खंड करने पर उनमेंसे बहुभागप्रमाण असंयतसम्यग्दृष्टि जीव हैं। इसीप्रकार अयोगिकेवलियोंके प्रमाण आनेतक ले जाना चाहिये । अथवा, एकेन्द्रियोंके भागाभागको इसप्रकार भी कहना चाहिये-बादर एकेन्द्रिय राशि प्राप्त होने तक एकोन्द्रिय राशिको आधी आधी करते जाना चाहिये । इसप्रकार अर्धा करनेसे जितनी अर्धच्छेद शलाकाएं प्राप्त होवें उनका विरलन करके और उस राशिके प्रत्येक अंकको दोरूप करके परस्पर गुणा करने पर असंख्यात लोकप्रमाण राशि उत्पन्न होती है । इस राशिको विरलित करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति सर्व एकेन्द्रिय राशिको समान खंड करके देयरूपसे दे देने पर प्रत्येक एकके प्रति बादर एकेन्द्रिय जीवोंका प्रमाण प्राप्त होता है । वहां बहुभागप्रमाण सुक्ष्म एकेन्द्रिय जीव और एक भागप्रमाण बादर एकेन्दिय जीव हैं । पुनः सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त राशि प्राप्त होने तक सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवराशिको अर्धाधरूपसे छेदित करना चाहिये। ऐसा करनेसे वहां जितने अर्धच्छेद प्राप्त हों उनका विरलन करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकको दो रूप करके परस्पर गुणा करनेसे जो असंख्यात राशि उत्पन्न होवे उसका विरलन करके और उस राशिके प्रत्येक एकके प्रति सूक्ष्म एकेन्द्रिय राशिको समान खंड करके देयरूपसे दे देने पर विरलित राशिके प्रत्येक "एकके प्रति सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त राशि प्राप्त होती है । वहां पर बहुभागप्रमाण सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त राशि है और एक भागप्रमाण सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त राशि है। इसीप्रकार बादर एकेन्द्रियोंका भी कथन करना चाहिये। यहां पर संदृष्टि देते हैं । वह इसप्रकार है
एकेन्द्रिय जीवराशि दोसौ छप्पन २५६ है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय राशि दोसौ चालीस २४० है। बादर एकेन्द्रियराशि सोलह १६ है । सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तराशि एकसौ अस्सी
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