Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

View full book text
Previous | Next

Page 566
________________ १, २, १७३.] दव्वपमाणाणुगमे भवियमग्गणाभागाभाग-अप्पाबहुगपरवणं [४०१ खेत्तपमाणं वुच्चदे । एसो पुण अभवसिद्धियरासिपमाणं सुट्ठ परिप्फुडो। कुदो ? अभवसिद्धियरासिपमाणं जहण्णजुत्ताणंतमिदि सयलाइरियजयप्पसिद्धादो। भागाभागं वत्तइस्सामो । सव्वजीवरासिमणंतखंडे कए बहुखंडा भवसिद्धियमिच्छाइट्ठिणो । सेसमणंतखंडे कए बहुखंडा णेव भवसिद्धिया णेव अभवसिद्धिया । सेसमणतखंडे कए बहुखंडा अभवसिद्धिया । सेसमसंखेज्जखंडे कए बहुखंडा असंजदसम्माइद्विणो । सेसमोघभंगो। अप्पाबहुगं तिविहं सत्थाणादिभेएण । भवसिद्धियसत्थाणं परत्थाणं मिच्छाइडिप्पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति औषं । अभवसिद्धियसत्थाणं णत्थि । सव्वपरत्थाणे सव्वत्थोवा अजोगिकेवली । चत्तारि उवसामगा संखेज्जगुणा । एवं जाव पलिदोवमं ति णेयव्वं । तदो अभवसिद्धिया अणंतगुणा । णेव भवसिद्धिया णेव अभवसिद्धिया अणंतगुणा । भवसिद्धियमिच्छाइट्ठी अणंतगुणा । ____ एवं भवियमग्गणा समत्ता । क्षेत्रकी अपेक्षा प्रमाण कहा जाता है। परंतु यह अभव्यसिद्धिक राशिका प्रमाण अत्यन्त स्फुट है, क्योंकि, अभव्यसिद्धिक राशिका प्रमाण जघन्य युक्तानन्त है, यह सर्व आचार्य जगत्में प्रसिद्ध है। __ अब भागाभागको बतलाते हैं- सर्व जीवराशिके अनन्त खंड करने पर बहुभाग भव्यसिद्धिक मिथ्यादृष्टि जीव हैं। शेष एक भागके अनन्त खंड करने पर बहुभाग भव्यसिद्धिक और अभव्यसिद्धिक विकल्परहित जीव होते हैं। शेष एक भागके अनन्त खंड करने पर बहुभाग अभव्यसिद्धिक जीव हैं। शेष एक भागके असंख्यात खंड करने पर बहुभाग असंयतसम्यग्दृष्टि जीव हैं। शेष भागाभाग ओघ भागाभागके समान है। स्वस्थान अल्पबहुत्व आदिके भेदसे अल्पबहुत्व तीन प्रकारका है। उनमें से भव्य. सिद्धिक जीवोंका स्वस्थान और परस्थान अल्पबहुत्व मिथ्यादाष्ट गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थानतक ओघ स्वस्थान और परस्थान अल्पबहुत्वके समान है। अभव्यसिद्धिक जीवोंका स्वस्थान अल्पबहुत्व नहीं पाया जाता है। सर्व परस्थान अल्पबहुत्वमें अयोगिकेवली जीव सबसे स्तोक हैं। चारों उपशामक अयोगियोंसे संख्यातगणे है। इसीप्रकार पल्योपमतक ले जाना चाहिये । पल्योपमसे अभव्यसिद्धिक जीव अनन्तगुणे हैं। भव्यसिद्धिक और अभव्यसिद्धिक विकल्पसे रहित अभव्यसिद्धिक जीवोंसे अनन्तगुणे हैं । भव्यसिद्धिक मिथ्यादृष्टि जीव अभव्योंसे अनन्तगुणे हैं। इसप्रकार भव्यमार्गणा समाप्त हुई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626