Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 613
________________ (३०) परिशिष्ट पृष्ठ पंक्ति मुद्रित पाठ मूडबिद्रीका पाठ ११८ १ साद्यनादीनौपशमिकादीन् साधनादीन् भावान् ११८ १५ सादि और अनादिरूप औपशमिक सादि और अनादि भावोंकी आदिभावोंकी १२५ ९णेयव्वा णायव्वा ,, २३ निषेध कर देना निषेध जानना १४७ १ अभावप्रसंगात् अभावासंजनात् ,, ५ इति चेन्न इति चेत् , २२ ऐसी शंका करना ठीक नहीं है, क्योंकि, क्योंकि, १५६ ६वण्णणीओ वण्णओ १५८ ५ तेहिंतो तेहि १८६ ५ तदेकत्वोपपत्तेः तदेकत्वोक्तेः , २० एकता बन जाती है। एकता कही है। २०९ १ प्रतिपादकार्षात् प्रतिपादनार्षात् २२८ ४ मिश्रणमवगम्यते मिश्रतेहावगम्यते , १३ जीवोंके साथ मिश्रण जीवोंके साथ यहां मिश्रण २५४ ९-शक्तर्निमित्तानामाप्तिः , २६ परिणमन करनेरूप शक्तिसे बने हुए परिणमन करनेकी शक्तिकी पूर्णताको आगत पुद्गलस्कंधोकी प्राप्तिको २५५ २ औदारिकादिशरीरत्रयपरिणाम- औदारिकादिपरिणमनशक्तेर्निष्पत्तिः शक्त्युपेतानां स्कंधानामवाप्तिः ,, १३ परिणमन करनेवाले औदारिक औदारिक आदि शरीररूप परिणमन करनेरूप आदि तीन शरीरोंको शक्तिसे शक्तिकी पूर्णताको युक्त पुद्गलस्कंधोंकी प्राप्तिको ४ -ग्रहणशक्त्युत्पत्तेनिमित्तपुद्गल -ग्रहणशक्तनिप्पत्तिः प्रचयावाप्तिः ,, १६ ग्रहण करनेरूप शक्तिकी उत्पत्तिके ग्रहण करनेरूप शक्तिकी पूर्णताको निमित्तभूत पुद्गलप्रचयकी प्राप्तिको ,, ६ निमित्तपुद्गलप्रचयावाप्तिः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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