Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 611
________________ (२८) परिशिष्ट पृष्ठ पंक्ति पाठ है। पाठ चाहिये। ४२७ ४ देवगदिअद्धाणं देवगदिकसाइअद्धाणं ४३० ६ मूलो उवसंतकसायरासी मूलोधुवसंतकसायरासी ४३६१०-११ दुविदणाणविरहिय दुविहण्णाणविरहिय४३६ २८ दोनों प्रकारके ज्ञानोंसे दोनों प्रकारके अज्ञानोंसे ४४० ३ चेव तम्हि चेव ४४२ १ लद्धिसंपण्णरासीणं लद्धिसंपण्णरिसीणं ,, १२ राशियां बहुत नहीं हो सकती हैं । ऋषि बहुत नहीं हो सकते हैं । ४४२ ६ सेसमसंखेज्जखंडे सेसमणंतखंडे , २० असंख्यात खंड अनन्त खंड ४४४ २ मदि सुदअण्णाणीसु मदि-सुदअण्णाणमिच्छाइट्ठीसु , १४ -ज्ञानी जीवोंमें ज्ञानी मिथ्यादृष्टि जीवोंमें ४४५ ९ विसेसाहिया २८ । विसेसाहिया २८ । आभिणि-सुदणाणिउवसामगा संखेज्जगुणा । खवगा संखेज्जगुणा। , २५ अहाईस हैं । मनःपर्ययज्ञानी अप्रम- अट्ठाईस हैं । आभिनिबोधिक और श्रुतज्ञानी उप. त्तसंयत जीव अवधिज्ञानी क्षपकोंसे शामक जीव अवधिज्ञानी क्षपकोंसे संख्यातगुणे हैं। मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी क्षपक जीव उक्त उपशामकोंसे संख्यातगुणे हैं। मनःपर्ययज्ञानी अप्रमत्तसंयत जीव उक्त क्षपकोंसे ४०६ ३ दुणाणिअसंजद आभिणिणाणि-सुदणाणिअप्पमत्तसंजदा संखज्जगुणा। तत्थेव पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा। दुणाणि असंजद, १६ अवधिज्ञानी प्रमत्तसंयतोंसे अवधिज्ञानी प्रमत्तसंयतोंसे आमिनिबोधिक और श्रुतज्ञानी अप्रमत्तसंयत जीव संख्यातगुणे हैं । इन्हीं दो ज्ञानोंमें प्रमत्तसंयत जीव उक्त अप्रमत्त. संयतोंसे संख्यातगुणे हैं । इनसे ४५४ ३ चक्खुदंसणहिदीए चक्खुदंसणमिच्छाइटिटिदीए " १५ चक्षुदर्शनकी चक्षुदर्शनी मिथ्यादृष्टियोंकी , ३ असंखेज्जदिभाए चक्खिदियपडि- असंते चक्खिदियपडिघादे भागे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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