Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 612
________________ मूडबिद्रीकी ताडपत्रीय प्रतियोंके मिलान (२९) पृष्ठ पंक्ति पाठ है। पाठ चाहिये । १५१ १७ चक्षुदर्शनवाले मिथ्यादृष्टियोंका अव- चूंकि चक्षुइन्द्रियके प्रतिघातके नहीं रहने पर हारकाल सूच्यंगुलके असंख्यातवें भागरूप आक्षेपका परिहार यह है कि चूंकि ४६१ ११ तेउलेस्सियअवहारकालो देवतेउलेस्सियअवहारकालो ,, २६ तेजोलेश्यासे युक्त जीवराशिका तेजोलेश्यासे युक्त देवोंका ४७३ २ सयलाइरियजयप्पसिद्धादो। सयलाइरियवियप्पसिद्धादो। , १४ यह सर्व आचार्य जगत्में प्रसिद्ध है। यह कथन सर्व आचार्योके वचनोंसे सिद्ध है। ४७८ ९ मिच्छाइट्ठिभाजिदतव्यग्गं मिच्छाइट्ठिरासिभजिदतव्वग्गं ४८६ १ खवगा संखेज्जगुणा । खवगा संखेज्जगुणा । सजोगिकेवली आहा रिणो संखेज्जगुणा । , १३ अप्रमत्तसंयत जीव क्षपकोंसे सयोगिकेवली आहारक जीव क्षपकोंसे संख्यात गुणे हैं । इनसे अप्रमत्तसंयत जीव ब-मूडविद्रीकी प्रतियोंके ऐसे पाठभेद जो शब्द और अर्थकी दृष्टिसे दोनों शुद्ध हैं, अतएव जो संभवतः प्राचीन प्रतियोंमें वैकल्पिकरूपसे निबद्ध पाये जाते हों। भाग १ १३ २ साह-पसाहा ३२ १ किमिति ७१ ६ तदो ९४ ५ ओरालिय-सरीर-णिज्जरं १०८ ३ स्वेष्टकृदैतिकायन१०८ ११ स्वेष्टकृत् ११० ४ जिणहरादीणं ११० १६ जिनालय आदिका ११२ १ चउण्हमहियाराणमत्थि ११२ १४ चार अधिकारोंका नामनिर्देश ११६ ६ छ-अहिय, ७ वाक्संस्कारकारणं साहुपसाहा किमर्थ पुणो ओरालिय-णिज्जरं स्विष्टिकृदैतिकायनस्विष्टिकृत् जिणहराणं जिनालयोंका चउण्हमाहियाराणमत्थचार अधिकारोंका अर्थनिर्देश छहि अहियसंस्कारकारणं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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