Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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(२४)
परिशिष्ट पृष्ठ पंक्ति पाठ है।
पाठ चाहिये। ५३५ ९ तेउ-पम्म सुक्कलेस्साओ भवंति। तेउ-पम्म-सुक्कलेस्साओ भवंति । बहुवण्णस्स. पंच-वण्ण-रस-कागस्स जीवसरिस्स कधमेक्कलेस्सा जुज्जदे ? ण,
पाधण्णपदमासेज्ज 'कसणो कागो' त्ति पंच
वण्णस्स कागस्स ५३५ २५ तेज, पद्म और शुक्ललेश्याएं तेज, पद्म और शुक्ललेश्याएं होती हैं।
होती हैं । जैसे पांचों वर्ण और शंका-अनेक वर्णवाले जीवके शरीरके एक पांचों रसवाले काकके अथवा लेझ्या कैसे बन सकती है ? पांचों वर्णवाले रसोंसे युक्त समाधान-नहीं, क्योंकि, प्राधान्यपदकी अपेक्षा काकके कृष्ण व्यपदेश ' काक कृष्ण है ' इसप्रकार पांचों वर्गोंसे युक्त
काकके जैसे कृष्ण व्यपदेश ५६८ ६ एवं देवगदी
एवं देवगदी समत्तो (त्ता) ५८९ ३ तिरिक्खगदीओ त्ति तिरिक्खगदि त्ति ५९० १० एवं विदियमग्गणा
एवमिंदियमग्गणा ५९८ ४ अपज्जत्ता दुविहा
अपज्जत्तभेयेण दुविहा ६०९ १२ आयारभावे मट्टियाए आधारभूमिमट्टियाए ६१० १२ आधारके होनेपर मट्टीके आधारभूत भूमिकी मट्टीके ६११ ३ बादरकाइयाणं
बादरतेउकाइयाणं ६४८ ८ केवलणं
सयोगकेवली ६४८ २० केवली जिनके
सयोगिकेवली जिनके ६५३ ३ भावगद-पुव्वगई च
भूदपुव्वगई च ६५३ १७ भावमनोगत पूर्वगति अर्थात् भूतपूर्वगति न्यायके
भूतपूर्व न्यायके ६५७ ४ मिच्छाइट्ठीणं
मिच्छाइट्ठीणं व ६५९ २ समणा भवदि
संभवो भवदीदि ६५९ ७ प्राणोंका सद्भाव हो जाता है, प्राणोंका होना संभव है, ६६० ४ वारिद-जीव-पदेसाणं
वा ठिदजीवपदेसाणं ६६० १६ व्याप्त जीवके
स्थित जीवके
१ देखो पृष्ठ ६५७ का अर्थ और विशेषार्थ ।
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