Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 572
________________ १, २, १८४.] दव्वपमाणाणुगमे सम्मत्तमग्गणाअप्पाबहुगपरूवणं [१७९ बहुखंडा सम्मामिच्छाइट्ठिणो। सेसमसंखेजरवंडे कए बहुखंडा सासणसम्माइडियो । सेसमसंखेज्जखंडे कए बहुखंडा वेदगसम्माइट्ठिसंजदासजदा । सेसमसंखेज्जखंडे कए बहुखंडा उवसमसम्माइद्विसंजदासजदा । सेसं संखेज्जरवंडे कए बहुखंडा खइयसम्माइट्ठिसंजदासजदा। सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा पमत्तसंजदा। सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा अप्पमत्तसंजदा । सेसं जाणिय वत्तव्यं । अप्पाबहुगं तिविहं सत्थाणादिभेएण । सव्वेसिं सत्थाणमोघं । परत्थाणे पयदै । सव्वत्थोवा वेदगसम्माइद्विअप्पमत्तसंजदा । पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा। असंजदसम्माइद्विअवहारकालो असंखेज्जगुणो । संजदासंजदअवहारकालो असंखेज्जगुणो। तस्सेव दव्वमसंखेज्जगुणं । एवं णेयव्वं जाव पलिदोवमं ति । उवसमसम्माइट्ठीसु सव्वत्थोवा चत्तारि उवसामगा । खवगा संखेज्जगुणा । अप्पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । पमत्तसंजदा संखेजगुणा । उवरि वेदगपरत्थाणभंगो। खइयसम्माइट्ठीसु सव्यत्थोवा चत्तारि उवसावगा । खवगा संखेज्जगुणा । अप्पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । संजदासंजदा संखेजगुणा । असंजदसम्माइटिअवहारकालो असंखेजगुणो । तस्सेव दवम भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव हैं। शेष एक भागके भसंख्यात खंड करने पर बहुभाग सासादनसम्यग्दृष्टि जीव हैं। शेष एक भागके असंख्यात बाड करने पर बहुभाग वेदकसम्यग्दृष्टि संयतासंयत जीव है। शेष एक भागके असख्यात खड करने पर बहभाग उपशमसम्यग्दृष्टि संयतासंयत जीव हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग क्षायिकसम्यग्दृष्टि संयतासंयत जीव हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग प्रमत्तसंयत जीव हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग अप्रमत्तसंयत जीव हैं । शेष भागाभागका कथन जानकर करना चाहिये। स्वस्थान अल्पबहुत्व आदिके भेदसे अल्पबहुत्व तीन प्रकारका है। उनमेंसे सभीका स्वस्थान अल्पबहुत्व ओघप्ररूणाके समान है। अब परस्थानमें अल्पबहुत्व प्रकृत है- वेदकसम्यग्दीष्ट अप्रमत्तसंयत जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे प्रमत्तसंयत जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे असयतसम्यग्दृधियोंका अवहारकाल असंख्यातगणा है। इससे संयतासंयतोंका अवहारकाल असंख्यातगुणा है। उन्हींका द्रव्य अवहारकालसे असंख्यातगुणा है। इसीप्रकार पल्योपमतक ले जाना चाहिये। उपशमसम्यग्दृष्टियों में चारों उपशामक सबसे थोड़े हैं। क्षपक संख्यातगुणे हैं। अप्रमत्तसंयत जीव क्षपकोंसे संख्यातगुणे हैं। प्रमत्तसंयत जीव अप्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं। इसके ऊपर वेदकसम्यग्दृष्टियोंके परस्थान अस्पबहुत्वके समान जानना चाहिये । क्षायिक सम्यग्दृष्टियों में चारों उपशामक सबसे स्तोक हैं । क्षपक उनले संख्यातगुणे हैं। इनसे अप्रमत्तसंयत संख्यातगुणे हैं। इनसे प्रमत्तसंयत संख्यातगुणे हैं। इनसे संयतासंयत संख्यातगुणे हैं । इनसे असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल असंख्यातगुणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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