Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 578
________________ १, २, १९२.] दवपमाणाणुगमे आहारमग्गणाभागाभाग-अप्पाबहुगपरूवणं [४८५ तम्हि आवलियाए असंखेज्जदिभाएण गुणिदे अणाहारिसासणसम्माइट्ठिअवहारकालो होदि। अजोगिकेवली ओघं ॥ १९२ ॥ सुगममेदं । भागाभागं वत्तइस्सामो। सव्वजीवरासिमसंखेज्जखंडे कए बहुखंडा आहारिमिच्छाइहिणो होति। सेसमणतखंडे कए बहुखंडा अणाहारिबंधगा होति । सेसमणंतखंडे कए बहुखंडा अणाहारिअबंधगा होति । सेसमसंखेज्जखंडे कए बहुखंडा आहारिअसंजदसम्माइट्ठिणो होति । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा सम्मामिच्छाइट्टिणो होति । सेसमसंखेज्जखंडे कए बहुखंडा आहारिसासणसम्माइट्ठिणो होति । सेसमसंखेजखंडे कए बहुखंडा संजदासजदा होति । सेसमसंखेज्जखंडे कए बहुखंडा अणाहारिअसंजदसम्माइट्ठिणो हेति । सेसमसंखेज्जखंडे कए बहुखंडा अणाहारिसासणसम्माइद्विणो होति । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा पमत्तसंजदा होति । सेसेगखंडं अप्पमत्तसंजदादओ' होति । अप्पाबहुगं तिविहं सत्थाणादिभेएण । तत्थ सत्थाणं मूलोघभंगो। परत्थाणे पयदं। .................. असंख्यात भागसे गुणित करने पर अनाहारक सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अपहारकाल होता है। अनाहारक अयोगिकेवली जीव ओघप्ररूपणाके समान हैं ॥ १९२ ॥ यह सूत्र सुगम है। अब भागाभागको बतलाते हैं-सर्व जीवराशिके असंख्यात खंड करनेपर बहुभाग आहारक मिथ्यादृष्टि जीव हैं। शेष एक भागके अनन्त खंड करने पर बहुभाग अनाहरक बन्धयुक्त जीव हैं। शेष एक भागके अनन्त खंड करने पर बहुभाग अनाहारक अबन्धक जीव हैं। शेष एक भागके असंख्यात खंड करने पर बहुभाग आहारक असंयतसम्यग्दृष्टि जीब हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव हैं। शेष एक भागके असंख्यात खंड करने पर बहुभाग आहारक सासादनसम्यग्दृष्टि जीव हैं। शेष एक भागके असंख्यात खंड करने पर बहुभाग संयतासंयत जीव हैं। शेष एक भागके असंख्यात खंड करने पर बहुभाग अनाहारक असंयतसम्यग्दृष्टि जीव हैं। शेष एक भागके असंख्यात खंड करने पर बहुभाग अनाहारक सासादनसम्यग्दृष्टि जीव है। शेष एक मागकेसंख्यात खंड करने पर बहुभाग प्रमत्तसंयत जीव हैं। शेष एकभाग प्रमाण अप्रमत्तसंयत मादि जीप हैं। सास्थान अस्पबहुस्व आदिके भेदसे भस्पबहुत्व तीन प्रकारका है। उनमेंसे स्वस्थान भस्याहुत्व मूल ओघ स्वस्थान भल्पषहुत्यके समान है। . .. . अयोगकेवलिमा सामान्योक्तसंख्याः । स. सि. १, .. २ प्रतिषु ' अप्पमत्तसंजदा' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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