Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 504
________________ १, २, १२३. ] Goaमाणागमे जोगमग्गणाअप्पा बहुगपरूवणे [ ४११ वा । कम्मइयकायजोगीसु सव्वत्थोवा सजोगिणो । असंजदसम्माइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । सासणसम्माइअिवहारकालो असंखेज्जगुणो । तस्सेव दव्वमसंखेज्जगुणं । असजद सम्माइद्विदव्वमसंखेज्जगुणं । पलिदोवममसंखेज्जगुणं । कम्मइयकायजोगिमिच्छाअनंतगुणा । ( सव्वपरत्थाणे पयदं । सव्वत्थोवा आहारमिस्सकायजोगिजीवा । आहारकायजोगिजीवा संखेज्जगुणा | अप्पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । पमत्त संजदा संखेज्जगुणा । सब्वे सिमसंजदसम्मादिट्ठीणं अवहारकालो असंखेज्जगुणो । एवं यव्वं जाव पलिदोवमं ति । किमेवं जाणिजदे ? उच्चियमिस्स - ओरालिय मिस्स-कम्मइयका यजोगीसु सासणसम्माइडि - असंजदसम्माइद्विरासीणं माहं ण जाणिज्जदिति । पुत्रं किमिदं परूविदं ? ण, आइरियाणं तस्स अभिप्पायंतरदरिसणट्टत्तादो ) पलिदोवमादो उवरि वचिजोगिअवहारकालो असंखेज्जगुणो | असच्चमोसवचिजोगिअवहार कालो विसेसाहिओ । वेउब्विय कायजोगि अनन्तगुणे हैं। आहारककाययोग और आहारक मिश्रकाययोगमें स्वस्थान अथवा परस्थान अल्पबहुत्व नहीं पाया जाता है । कार्मणकाययोगियों में सयोगिकेवली जीव सबसे स्तोक हैँ । असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल सयोगियों के प्रमाणसे असंख्यातगुणा है । सासादनसम्यग्दष्टियोंका अवहारकाल असंयतसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालसे असंख्यातगुणा है। उन्हींका द्रव्य अपने अवहारकालसे असंख्यातगुणा है । असंयतसम्यग्दृष्टियोंका द्रव्य सासादन द्रव्यसे असंख्यातगुणा है । पल्योपम असंयतसम्यग्दृष्टियों के द्रव्यसे असंख्यातगुणा है । कार्मणकाय योगी मिथ्यादृष्टियों का द्रव्य पल्योपमसे अनन्तगुणा है । । अब सर्व परस्थानमें अल्पबहुत्व प्रकृत है । आहारमिश्रकाययोगी जीव सबसे स्तोक है। आहारकाययोगी जीव आहार मिश्र जीवोंसे संख्यातगुणे हैं । अप्रमत्तसंयत जीव आहारकाययेगियास संख्यातगुणे हैं । प्रमत्तसंयत जीव अप्रमत्तसंयतों से संख्यातगुणे हैं। सभीका असंयत' सम्यग्दृष्टि अवहारकाल प्रमत्तसंयतोंसे असंख्यातगुणा है । इसीप्रकार पल्योपमतक ले जाना चाहिये । शंका- ऐसा किसलिये समझें ? समाधान - वैक्रियिकमिश्र, औदारिकमिश्र और कार्मणकाययोगियों में सासादन. सम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि राशियोंका माहात्म्य अर्थात् परस्पर अल्पबहुत्व नहीं जाना जाता है, इसलिये ऐसा समझना चाहिये । शंका - तो फिर इनके अल्पबहुत्वका पहले प्ररूपण किसलिये किया है ? समाधान — नहीं, क्योंकि, घां दूसरे आचार्योंका अभिप्रायान्तर दिखलाना उनके अल्पबहुत्व के कथनका प्रयोजन था । पोपमके ऊपर वचनयोगियोंका अवहारकाल असंख्यातगुणा है । अनुभयवचनयोगिका अवहारकाल वचनयोगियोंके अवहारकालसे विशेष अधिक है। वैक्रियिककाययोगियोंका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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