Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 539
________________ ४४६ ] छक्खडागमे जीवद्वाणं [ १२, १४७. कमेण पमाणपरूवणादो । कजं कारणाणुरूवं सव्वहा ण होदि त्तिण वत्तव्वं, कत्थ वि कारणाणुरूवकज्जदंसणादो। ण जिणंतरेण वभिचारो, तस्स पडिणियदतित्थ पडिबद्धत्तादो । दुणाणिअसंजद सम्माइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । तिगाणिअसंजदसम्म इडिअवहारकालो विसेसाहिओ | दुणाणिसम्मामिच्छाइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । तिणाणिसम्मामिच्छाइट्ठिअवहारकालो विसेसाहिओ । दुणाणिसासणसम्म इडिअवहारकालो संखेज्जगुणो । तिणाणिसा सणसम्म इडिअवहारकालो विसेसाहिओ । दुणाणिसंजदासंजदअवहारकाल असंखेज्जगुणो । तिणाणिसंजदासंजदअवहारकालो असंखेज्जगुणो । तस्सेव दव्वमसंखेज्जगुणं । एवमवहारकालपडिलोमेण णेदव्वं जाव पलिदोवमं ति । तदो विहंगणाणिमिच्छाइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । विक्खंभसूई असंखेजगुणा । सेठी असंखेज्जगुणा । दव्वमसंखेज्जगुणं । परमसंखेज्जगुणं । लोगो असंखेज्जगुणो । केवलणाणिणो अनंतगुणा । मदि-सुदअण्णाणिमिच्छाइट्टिणो अनंतगुणा । एवं णाणमग्गणा समत्ता । क्रम से किया है । कार्य सर्वदा कारणके अनुरूप नहीं होता है, यह भी नहीं कहना चाहिये, क्योंकि, कहीं पर भी कारणके अनुरूप कार्य देखा जाता है । जिनान्तरसे व्यभिचार भी नही आता है, क्योंकि, जिनान्तर प्रतिनियत तीर्थसे प्रतिबद्ध होता है । अवधिज्ञानी प्रमत्त संयतोंसे दो ज्ञानवाले असयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल असंख्यातगुणा है। तीन ज्ञानवाले असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल दो ज्ञानवाले असंयतसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकाल से विशेष अधिक है। दो ज्ञानवाले सम्यग्मिध्यादृष्टियोंका अवहारकाल तीन ज्ञानवाले असंयतसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालसे असंख्यातगुणा है । तीन ज्ञानवाले सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल दो ज्ञानवाले सम्यग्मिथ्यादृष्टियों के अवहारकालसे विशेष अधिक है । दो ज्ञानवाले सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल तीन ज्ञानवाले सम्यग्मिथ्यादृष्टियों के अवहारकालसे संख्यातगुणा है। तीन ज्ञानवाले सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल दो ज्ञानबाले सासादनसम्यग्दृष्टियों के अवद्दारकालसे विशेष अधिक है । दो ज्ञानवाले संयतासंयतोंका अवहारकाल तीन ज्ञानवाले सासादनसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालसे असंख्यातगुणा है | तीन ज्ञानवाले संयतासंयतों का अवहारकाल दो ज्ञानवाले संयतासंयतों के भवहारकालसे असंख्यातगुणा है । उन्हीं तीन ज्ञानवाले संयतासंयतोंका द्रव्य उन्हीं भवद्दारकालसे असंख्यातगुणा है । इसप्रकार अवहारकालके प्रतिलोमक्रम से पल्योपमतक ले जाना चाहिये । पल्योपमसे विभंगज्ञानी मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल असंख्यातगुणा है । उन्हींकी विष्कंभसूची अवहारकालसे असंख्यातगुणी है । जगश्रेणी विष्कंभसूचीसे असंख्यात - गुणी है। उन्हींका द्रव्य जगश्रेणीसे असंख्यातगुणा है । जगप्रतर द्रव्यसे असंख्यातगुणा है । लोक जगप्रतरसे असंख्यातगुणा है । केवलज्ञानी लोकसे अनन्तगुणे हैं । मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी मिथ्यादृष्टि जीव केवलज्ञानियोंसे अनन्तगुणे हैं । इसप्रकार ज्ञानमार्गणा समाप्त हुई । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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