Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 538
________________ १, २, १४७. दव्वपमाणाणुगमे णाणमग्गणा अप्पा बहुगपरूवणं [ ४४५ संखेज्जगुणा । पमत्त संजदा संखेज्जगुणा । असंजदसम्माइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । संजदासंजद अवहारकालो असंखेज्जगुणो । तस्सेव दव्वमसंखेज्जगुणं । असंजदसम्माइट्ठिदव्यमसंखेज्जगुणं । पलिदोत्रममसंखेज्जगुणं । एवं चेत्र ओहिणाणि परत्थाणं पिवत्तन्वं I मणपज्जवणाणि सव्वत्थोवा उवसामगा । खवगा संखेज्जगुगा । अप्पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । केवलणाणीसु सव्वत्थोवा सजोगिकेवली । अगिवली अणतगुणा । परत्थाणं गदं । सव्वपरत्थाणे पयदं । सव्वत्थोवा मणपज्जवणाणि उवसामगा दस १० । ओहिपाणिउवसामगा विसेसाहिया १४ । मणपज्जवणाणिखवगा विसेस हिया २० । ओहिगाणिखवगा विसेसाहिया २८ । मणपज्जवणाणिणो अप्पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । तत्थेव ओहिणाणिणो विसेसाहिया । मगपजवणाणिणो पमत्ता विसेसाहिया । तत्थेव ओहिणाणिणो विसेसाहिया | कुदो एदमवगम्मदे ? उवसम - खवगसेढिम्हि एदेसिं दोन्हं णाणाणं एदेणेव अप्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं । मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल प्रमत्तसंयतोंसे असंख्यातगुणा है । मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी संयतासंयतोंका अवहारकाल असंयतसम्यग्दृष्टियों के अवहारकालले असंख्यातगुणा है। उन्हींका द्रव्य अवहारकालसे असंख्यातगुणा है । मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी असंयतसम्यग्दृष्टियोंका द्रव्य संयतासंयतों के द्रव्यसे असंख्यातगुणा है । पल्योपम असंयतसम्यग्दृष्टियोंके द्रव्यसे असंख्यातगुणा है । इसीप्रकार अवधि - ज्ञानियोंके परस्थान अल्पबहुत्वका भी कथन करना चाहिये । मनःपर्ययज्ञानी उपशामक सबसे स्तोक हैं । मन:पर्ययज्ञानी क्षपक जीव उपशामकोंसे संख्यातगुणे हैं । मनःपर्ययज्ञानी अप्रमत्तसंयत जीव क्षपकों से संख्यातगुणे हैं । मन:पर्ययज्ञानी प्रमत्तसंयत जीव अप्रमत्तसंयतों से संख्यातगुणे हैं । केवलज्ञानियों में सयोगिकेवली जीव सबसे स्तोक हैं । अयोगिकेवली जीव सयोगिकेवलियों से अनन्तगुणे हैं । इसप्रकार परस्थान अल्पबहुत्व समाप्त हुआ । सर्वपरस्थान में अल्पबहुत्व प्रकृत है - मन:पर्ययज्ञानी उपशामक जीव सबसे स्तोक होते हुए दश हैं । अवधिज्ञानी उपशामक मन:पर्ययज्ञानियोंसे विशेष अधिक होते हुए चौदह हैं । मन:पर्ययज्ञानी क्षपक विशेष अधिक होते हुए बीस हैं । अवधिज्ञानी क्षपक विशेष अधिक होते हुए अट्ठाईस हैं । मन:पर्ययज्ञानी अप्रमत्तसंयत जीव अवधिज्ञानी क्षपकोंसे संख्यातगुणे हैं। वहीं पर अर्थात् अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें अवधिज्ञानी जीव मनःपर्ययज्ञानि योंसे विशेष अधिक हैं । मन:पर्ययज्ञानी प्रमत्तसंयत जीव अवधिज्ञानी अप्रमत्तसंयतों से विशेष अधिक हैं। वहीं पर अर्थात् प्रमत्तसंयत गुणस्थान में ही अवधिज्ञानी जीव मनःपर्ययज्ञानियों से विशेष अधिक हैं । शंका- यह कैसे जाना जाता है ? समाधान - उपशम और क्षपक श्रेणीमें इन दोनों ज्ञानोंके प्रमाणका प्ररूपण इसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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