Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

View full book text
Previous | Next

Page 552
________________ १, २, १६२.] दवपमाणाणुगमे लेस्सामग्गणापमाणपरूवणं [१५९ गुणा । पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । दुदंसणिअसंजदसम्माइटिअवहारकालो असंखेज्जगुणो। तिदसणअसंजदसम्माइट्ठिअवहारकालो विसेसाहिओ। दुर्दमणसम्मामिच्छाइटिअवहारकालो असंखेज्जगुणो। दुदंसणसासणसम्माइटिअबहारकालो संखेजगुणों। दुदंसणमजदासंजदअवहारकालो असंखेज्जगुणो। तिदंसणसंजदासंजदअवहारकालो असंखेज्जगुणो । तस्सेव दव्बमसंखेज्जगुणं । एवमवहारकालपडिलोमेण णेदव्वं जाव पलिदोवमं ति । तदो चक्खुदंसणिमिच्छाइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो। विक्खंभसूई असंखेजगुणा । सेढी असंखेजगुणा । दबमसंखेज्जगुणं । पदरमसंखेज्जगुणं । लोगो असंखेज्जगुणो । केवलदसणी अणंतगुणा ।अचक्खुदंसणी अणंतगुणा । __ एवं दंसणमग्गणा गदा । लेस्साणुवादेण किण्हलेस्सिय-णीललेस्सिय-काउलेस्सिएसु मिच्छाइट्टिप्पहुडि जाव असंजदसम्माइहित्ति ओघं ॥ १६२ ॥ दर्शनवाले प्रमत्तसंयतोंसे असंख्यातगुणा है । तीन दर्शनवाले असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल दो दर्शनघाले असंयतसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालसे विशेष अधिक है। दो दर्शनवाले सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल तीन दर्शनवाले असंयतसम्यग्दृष्टियोंके अघहारकालसे भसंख्यातगुणा है। दो दर्शनवाले सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अपहारकाल दो दर्शनषाले सम्यमिथ्यादृष्टियोंके अवहारकालसे संख्यातगुणा है। दो दर्शनवाले संयतासंयतोंका अवहारकाल दो दर्शनवाले सासादनसम्यग्दृष्टियोंके अघहारकालसे असंख्यातगुणा है। तीन दर्शनवाले संयतासंयतोंका अवहारकाल दो दर्शनवाले संयतासंयतोंके अवहारकालसे असंख्यातगुणा है। उन्हीं तीन दर्शनषाले संयतासंयतोंका द्रव्य उन्हींके अघहारकालसे असंख्यातगुणा है। इसीप्रकार अवहारकालके प्रतिलोमरूपक्रमसे पल्योपमतक ले जाना चाहिये । पल्योपमसे चक्षु. दर्शनी मिथ्याष्टियोंका अघहारकाल असंख्यातगुणा है। उन्हींकी विष्कंभसूची अपने अवहारकालसे असंख्यातगुणी है। अगश्रेणी विष्कंभसूचीसे असंख्यातगुणी है। उन्हींका द्रव्य जगश्रेणीसे असंख्यातगुणा है। जगप्रतर द्रव्यसे असंख्यातगुणा है। लोक जगप्रतरसे असंख्यात. गुणा है। केवलदर्शनी जीव लोकसे अनन्तगुणे हैं । अचक्षुर्दशनी जीव केवलदर्शनियोंके प्रमाणसे अनन्तगुणे हैं। इसप्रकार दर्शनमार्गणा समाप्त हुई । लेश्यामार्गणाके अनुवादसे कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले और कापोतलेश्यावाले जीवों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानतक प्रत्येक गुणस्थानमें जीव ओषप्ररूपणाके समान हैं ॥ १६२॥ १ प्रतिषु । असंखेज्जगुणो' इति पाठः । २ लेश्यानुवादेन कृष्णमालकापोतलेश्या मिथ्यादृष्टयादयोऽसंयतसम्यग्दृष्ट यन्ता: सामान्योक्तसंख्याः । से. सि. १,८. किण्हादिरासिमावलिअसखभागेण भजिय पविभते । हीणकमा काल वा अस्सिय दवा दु मजिदचा ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626