Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, १६३.] दन्वपमाणाणुगमे लेस्सामग्गणापमाणपरूवणं
[ ४६१ तेउलेस्सिएसु मिच्छाइट्ठी दवपमाणेण केवडिया, जोइसियदेवेहि सादिरेयं ॥ १६३ ॥
एदस्स अत्थो वुच्चदे। जोइसियदेवा पज्जत्तकाले सव्वे तेउलेस्सिया भवंति । अपज्जत्तकाले पुण ते चेय किण्ह-णील-काउलेस्सिया होति । ते च पजत्तरासिस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता। वाणवेंतरदेवा वि पज्जत्तकाले तेउलेस्सिया चेव होति । ते च जोइसियदेवाणं संखेजदिभागमेत्ता हति । एदेसिमपज्जत्ता किण्ह-णील-काउलेस्सिया भवति । ते च सगपज्जत्ताणं संखेजदिभागमेत्ता । मणुस-तिरिक्खेसु वि तेउलेस्सियमिच्छाइद्विरासी पदरस्स असंखेज्जदिभागमेत्तो तिरिक्खपम्मलेस्सियरासीदो संखेज्जगुणो अस्थि । एदे तिणि वि रासीओ भवणवासिय-सोहम्मीसाणमिच्छाइट्ठीहि सह गदाओ जोइसियदेवेहि सादिरेया हवंति । एदेसिमवहारकालो वुच्चदे। तं जहा- जोइसियअवहारकालादो पदरंगुलस्स संखेज्जदिभागे अवणिदे तेउलेस्सियवहारकालो होदि । तदो एक्कपदरंगुलं घेत्तूण संखेज्जखंडं करिय एगखंडमवणिय बहुखंडे तम्हि चेव पक्खित्ते तेउ
तेजोलेश्यावाले जीवोंमें मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? ज्योतिषी देवोंसे कुछ अधिक हैं ॥ ६३ ॥
अब इस सूत्रका अर्थ कहते हैं- पर्याप्तकाल में सभी ज्योतिषी देव तेजोलेश्यासे युक्त होते हैं। तथा अपर्याप्त कालमें वे ही देव कृष्ण, नील और कापोतलेश्यासे युक्त होते हैं । वे अपर्याप्त ज्योतिषी जीव अपनी पर्याप्त राशिके असंख्यातवें भागमात्र होते हैं। वाणव्यन्तर देव भी पर्याप्तकालमें तेजोलेश्यासे युक्त होते हैं, और वे वाणव्यन्तर पर्याप्त जीव ज्योतिषियोंके संख्यातवें भागमात्र होते हैं। इन्हीं वाणव्यन्तरों में अपर्याप्त जीव कृष्ण, नील भौर कापोतलेश्यासे युक्त होते हैं, और वे अपर्याप्त वाणव्यन्तर देव अपनी पर्याप्त राशिके संख्यातवें भागमात्र होते हैं। मनुष्य और तिर्यंचों में भी तेजोलेश्यासे युक्त मिथ्यादृष्टिराशि जगप्रतरके असंख्यातवें भागप्रमाण है, जो पद्मलेश्यासे युक्त तिर्यंचराशिसे संख्यातगुणी है । इन तीनों राशियोंको भवनवासी और सौधर्म-पेशान राशिके साथ एकत्रित कर देने पर यह राशि ज्योतिषी देवोंसे कुछ अधिक हो जाती है। अब इस राशिके अवहारकालका कथन
वह इसप्रकार है- ज्योतिषी देवोंके अवहारकालमेंसे प्रतरांगलके संख्यात भागप्रमाणको घटा देने पर तेजोलेश्यासे युक्त जीवरांशिका अवहारकाल होता है। उक्त तेजोलेश्यासे युक्त जीवराशिके अवहारकालमेंसे एक प्रतरांगुलको ग्रहण करके और उसके संख्यात खंड करके एक खंडको घटा कर शेष बहुत खंडोंको उसी अवहारकालमें मिला देने पर
तेज:पद्मलेश्या मिष्यादृष्टयादयो संयतासंयतान्ताः स्त्रीवेदवत् । स. सि. १,८. तेउतिया संखेज्जा संखासंखेजभागकमा ॥ जोइसियादो अहिया तिरिक्खमणिस्स संखभागो दु। सूइस्स अंगुलस्स य असंखभागं तु तेउतियं ॥ उदु असंखकप्पा... | ओहिमसंखेम्जदिमं तेउतिया भावदो होति ।। गो. जी. ५३९, ५४०,५४३.
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