Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 525
________________ १३२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, २, ११०. समपुंजे करिय हुवेदव्वं । पुणो अवणिदएयखंडमावलियाए असंखेज्जदिभाएण खंडेऊण तत्थ बहुखंडे पढमपुंजे पक्खित्ते लोभकसायमिच्छाइद्विरासी होदि । सेसेयखंडमावलियाए असंखेञ्जदिभाएण खंडेऊण बहुखंडे विदियपुंजे पक्खित्ते मायकसायमिच्छाइद्विरासी होदि। सेसेयखंडमावलियाए असंखेज्जदिभाएण खंडिय बहुखंडे तदियपुंजे पक्खित्ते कोधकसाइमिच्छाइहिरासी होदि । सेसं चउत्थपुंजे पक्खित्ते माणकसायमिच्छाइद्विरासी होदि । सेसमणंतखंडे कए बहुखंडा अकसाया होति । एत्तो उवरि कसायगुणगारेहितो सम्मामिच्छाइद्विरासिं पडि सासणसम्माइद्विगुणगारो संखेज्जगुणो ति उवएसमवलंबिय भागाभागो वुच्चदे । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा लोभकसायअसंजदसम्माइहिरासी होदि । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा मायकसायअसंजदसम्माइहिरासी होदि । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा माणकसायअसंजदसम्माइहिरासी होदि । सेसमसंखेज्जखंडे कए बहुखंडा कोधकसायअंसंजदसम्माइट्ठिरासी होदि । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा लोभकसायसम्मामिच्छाइद्विरासी होदि। सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा मायकसायसम्मामिच्छाइहिरासी होदि । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा माणकसायसम्मामिच्छाइद्विरासी चाहिये । पुन निकालकर पृथक् रक्खे हुए एक भागको आवलीके असंख्यातवें भागसे खंडित करके उनमेंसे बहुभाग पहले पुंजमें मिला देने पर लोभकषाय मिथ्याटष्टि जीवराशि होती है। शेष एक खंडको आवलीके असंख्यातवें भागसे खंडित करके बहुभाग दूसरे पुंजमें मिला देने पर मायाकषाय मिथ्यादृष्टि जीवराशि होती है । शेष एक खंडको आवलीके असंख्यातवें भागसे खंडित करके बहुभाग तीसरे पुंजमें मिला देने पर क्रोधकषायी मिथ्यादृष्टि जीवराशि होती है। शेष एक भागको चौथे पुंजमें मिला देने पर मानकषाय मिथ्यादृष्टि राशि होती है। सर्व जीवराशिके अनन्त खंडोंमेंसे जो एक खंड प्रमाण अकषायी और गुणस्थानप्रतिपन्न बतलाये थे उस एक खंडके अनन्त खंड करने पर बहुभाग अकषाय जीव होते हैं। अब आगे कषायके गुणकारसे सम्याग्मिथ्यादृष्टि जीवराशिके प्रति सासादनसम्यग्दृष्टिका गुणकार संख्यातगुणा है। इसप्रकारके उपदेशका अवलम्बन लेकर भागाभागका कथन करते हैं। शेषके संख्यात खंड करने पर बहुभाग लोभकषाय असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशि है। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग मायाकषाय असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशि है। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग मानकषाय असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशि है। शेष एक भागके संख्यातं खंड करने पर बहुभाग क्रोधकषाय असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशि है। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग लोभकषाय सम्यग्मिथ्याष्टि जीवराशि है। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग मायाकषाय सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवराशि है। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग मानकषाय सम्यग्मिथ्याष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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