Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

View full book text
Previous | Next

Page 529
________________ ४३६] छक्खंडागमे जीवहाणं [१, २, १४१. मायकसायसंजदासंजदअवहारकालो विसेसाहिओ । कोधकसायसंजदासंजदअवहारकालो विसेसाहिओ। माणकसायसंजदासंजदअवहारकालो विसेसाहिओ। तस्सेव दव्वमसंखेजगुणं । एवं अवहारकालपडिलोमेण णेयव्वं जाव पलिदोवमं ति । अकसाई अणंतगुणा । माणकसाइमिच्छाइट्ठी अणंतगुणा । कोधकसाइमिच्छाइट्टी विसेसाहिया। मायकसाइमिच्छाइट्ठी विसेसाहिया । लोभकसाइमिच्छाइट्ठी विसेसाहिया। एवं कसायमग्गणा समत्ता । णाणाणुवादेण मदिअण्णाणि-सुदअण्णाणीसु मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी दव्वपमाणेण केवडिया, ओघ ॥१४॥ एदस्सत्थो बुच्चदे । तं जहा- ओघमिच्छाइट्ठि-सासणसम्माइट्ठिरासीहिंतो मदिसुदअण्णाणिमिच्छाइट्ठि-सासणसम्माइट्ठिरासिणो ण एकेण वि जीवेण ऊणा भवंति, दुविहणाणविरहिय-मिच्छाइट्ठि-सासणसम्मादिट्ठीणमभावादो। विभंगणाणिणो मिच्छादिहि-सासण ...................... गुणा है। मायाकषाय संयतासंयतोंका अवहारकाल लोभकषाय संयतासंयत अवहारकालसे विशेष अधिक है । क्रोधकषाय संयतासंयतोंका अवहारकाल मायाकषाय संयतासंयत अवहारकालसे विशेष अधिक है । मानकषाय संयतासंयत अपहारकाल क्रोधकषाय संयतासंयत अवहारकालसे विशेष अधिक है । मानकषाय संयतासंयतोंका द्रव्य उन्हींके अघहारकालसे असंख्यातगुणा है। इसीप्रकार अयहारकालके प्रतिलोमक्रमसे पल्योपमतक ले जाना चाहिये। पल्योपमसे कषायरहित जीव अनन्तगुणे हैं। मानकषायी मिथ्यादृष्टि जीव कषायरहित जीवोंसे अनन्तगुणे हैं। क्रोधकषायी मिथ्यादृष्टि जीव मानकषायी मिथ्यादृष्टियोंसे विशेष अधिक हैं। मायाकषायी मिथ्याहाट जीव क्रोधकषायी मिथ्यादृष्टियोंसे विशेष अधिक है। लोभकषायी मिथ्यादृष्टि जीव मायाकषायी मिथ्यादृष्टियोंसे विशेष भधिक हैं। इसप्रकार कषायमार्गणा समाप्त हुई। ज्ञानमार्गणाके अनुवादसे मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें मिथ्यादृष्टि और सांसादनसम्यग्दृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? ओघप्ररूपणाके समान हैं ॥ १४१॥ इस सूत्रका अर्थ कहते हैं। वह इसप्रकार है- ओघ मिथ्यादृष्टिराशि और ओघ सासादनसम्यग्दृष्टि राशिसे मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी मिथ्यादृष्टिराशि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीव राशि एक भी जीव प्रमाणसे कम नहीं है, क्योंकि, उक्त दोनों प्रकारके ज्ञानोले रहित मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीव नहीं पाये जाते हैं। . १ज्ञानानुवादेन मत्यज्ञानिनः श्रुताज्ञानिनश्च मिथ्याष्टिसासादनसम्यग्दृष्टयः सामान्योक्तसंख्याः। स. सि. १.८. सण्णाणिरासिपंचयपरिहीणो सव्वजीवरासी हु । मदिसुदअण्णाणीणं पत्तेयं होदि परिमाणं ॥ गो. जी. ४६४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626