Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
३१८ ]
छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, २, ८६. खत्तेण पंचिंदियअपज्जत्तएहि पदरमवहिरदि अंगुलस्स असंखेज्जदिभागवग्गपडिभाएण ॥ ८६ ॥
एदं पि सुत्तं सुगम चेव । एदाणि तिण्णि वि सुत्ताणि पंचिंदियअपज्जत्तपडिबद्धाणि विगलिंदियापज्जत्तसुत्तं व पंचिंदियमिच्छाइद्विसुत्तम्हि चेव किण्ण वुत्ताणि त्ति वुत्ते ण, पंचिंदियअपज्जत्तेसु गुणपडिवण्णाभावपरूवणहत्तादो पुध सुत्तारंभस्स । अपज्जत्तकाले वि पंचिंदिएसु गुणपडिवण्णा अत्थि वेउब्विय-ओरालियमिस्स-कम्मइयकायजोगेसु सम्मत्त-णाण-दसणोवलंभादो। इदि चे, होदु णाम णिव्वत्तिं पडि अपज्जत्तएसु गुणपडिवण्णाणमत्थितं, अपज्जत्तणामकम्मोदएण सह गुणाणं अवट्ठाणविरोहा।।
भागाभागं वत्तइस्साम।। सव्वजीवरासि सखेजखंडे कए तत्थ बहुखंडा सुहुमेइंदियपज्जसा होति । सेसमसंखेज्जलोगमेत्तखंडे कए तत्थ बहुखंडा सुहुमेइंदियअपज्जत्ता होति । सेसमसंखेजखंडे कए बहुखंडा बादरेइंदियअपज्जत्ता होति । सेसमणंतखंडे कए बहुखंडा
क्षेत्रकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके द्वारा सूच्यंगुलके असंख्यातवें भागके वर्गरूप प्रतिभागसे जगप्रतर अपहृत होता है ॥ ८६ ॥
यह सूत्र भी सुगम ही है। ये पूर्वोक्त तीनों भी सूत्र पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके प्रमाणसे प्रतिबद्ध हैं।
शंका-जिसप्रकार विकलेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके प्रमाणका प्रतिपादक सूत्र स्वतन्त्र न होकर विकलेन्द्रिय और उनके पर्याप्तकोंके प्रमाणके प्रतिपादक सूत्र के साथ ही निबद्ध है, उसीप्रकार पंचेन्द्रिय मिथ्यादृष्टियोंके प्रमाणके प्रतिपादक सूत्रोंमें ही, पंचन्द्रिय अपर्याप्तकोंके प्रमाणके प्रतिपादक सूत्र निबद्ध करके क्यों नहीं कहे ?
समाधान-ऐसा पूछने पर आचार्य कहते हैं कि नहीं, क्योंकि, पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके प्रमाणके प्रतिपादक सूत्रोंका पृथक्पसे आरंभ पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकोंमें गुणस्थानप्रतिपन्न जीवोंके अभावके प्ररूपण करने के लिये किया है।
शंका- अपर्याप्त कालमें भी पंचेन्द्रियों में गुणस्थानप्रतिपन्न जीव होते हैं, क्योंकि, वैक्रियिकमिश्र, औदारिकमिश्र और कार्मणकाययोगमें सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तथा दर्शनकी उपलब्धि पाई जाती है?
समाधान- यदि ऐसा है तो निवृत्तिकी अपेक्षा अपर्याप्तकों में गुणस्थानप्रतिपन्न जीवोंका सद्भाव रहा आवे, परंतु अपर्याप्त नामकर्मके उदयके साथ सम्यग्दर्शन आदि गुणोंका सद्भाव मानने में विरोध आता है।
__ भय भागाभागको बतलाते हैं- सर्व जीवराशिके संपात खंड करने पर उनमेंसे बहुभागप्रमाण सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त जीव हैं। शेष एक भागके असंख्यात लोकप्रमाण खंड करने पर उनमें से बहुभागप्रमाण सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीव हैं। शेष एक भागके असंख्यात खंड करने पर उनसे बहुभागप्रमाण बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीव हैं। शेष एक भागके अनन्त
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org