Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१,२, १०२. ]
दव्यमाणागमे कायमग्गणा अप्पा बहुगपरूवणं
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कए बहुखंडा तसकाइयपज्जत्तमिच्छाइट्ठी होंति । सेसे असंखेज्जखंडे कए बहुखंडा असंजदसग्माइट्टिणो होंति । एवं णेयव्वं जाव संजदासजदा ति । सेसे असंखेज्ज - खंडे कए बहुखंडा बादरते उकाइयपज्जत्ता होंति । सेसे संखेज्जखंडे कए बहुखंडा पमत्त संजदा होंति । एवं यव्वं जाव अजोगिकेवलि त्ति ।
अप्पा बहुगं तिविहं, सत्थाणं परत्थाणं सव्वपरत्थाणं चेदि । सत्थाणे पयदं । सव्वत्थ वा बादरपुढविकाइयपज्जत्ता । तेसिमपज्जत्ता असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? असंखेज्जा लोगा । बादरपुढविकाइया विसेसाहिया । सव्वत्थोवा सुहुमपुढविकाइय अपज्जत्ता । सिं पज्जत्ता संखेज्जगुणा । को गुणगारो ? संखेज्जसमया । सुहुमपुढविकाइया विसेसाहिया । एवं आउकाइय- ते उकाइय-वाउकाइयाणं च सत्थाणं वत्तव्यं । सव्वत्थोवा बादरवण फइकाइयपज्जत्ता । तेसिमपज्जत्ता असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ! असंखेजा लोगा । बादरवण फइकाइया विसेसाहिया । सव्वत्थोवा सुहुमवण फइकाइयअपज्जत्ता । तेसिं
असंख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभागप्रमाण त्रसकायिक अपर्याप्त जीव होते हैं । शेष एक भाग असंख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभागप्रमाण त्रसकायिक पर्याप्त मिथ्यादृष्टि जीव होते हैं । शेष एक भागके असंख्यात खंड करने पर उनमेंसे बहुभागप्रमाण असंयत सम्यग्दृष्टि जीव होते हैं । इसीप्रकार संयतासंयताका प्रमाण आने तक भागा - भागका कथन ले जाना चाहिये । शेष एक भागके असंख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभागप्रमाण बादर तेजस्कायिक पर्याप्त जीव हैं। शेष एक भाग के संख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभागप्रमाण प्रमत्तसंयत जीव हैं । इसीप्रकार अयोगिकेवलियों के प्रमाण आनेतक भागाभागका कथन करना चाहिये ।
अल्पबहुत्व तीन प्रकारका है, स्वस्थान अल्पबहुत्व, परस्थान अल्पबहुत्व और सर्व परस्थान अल्पबहुत्व । उनमेंसे स्वस्थान अल्पबहुत्वमें प्रकृत विषयको बतलाते हैं— बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त जीव सबसे स्तोक हैं । बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त जीव उनसे असंख्यातगुणे हैं। गुणकार क्या है ? असंख्यात लोक गुणकार है । बादर पृथिवीकायिक जीव बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्तोंसे विशेष अधिक हैं। सूक्ष्म पृथिवीकायिक अपर्याप्त जीव सबसे स्तोक हैं । सूक्ष्म पृथिवीकायिक पर्याप्त जीव सूक्ष्म पृथिवीकायिक अपर्याप्तों से संख्यातगुणे हैं । गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है । सूक्ष्म पृथिवीकायिक जीव सूक्ष्म पृथिवीकायिक पर्याप्तोंसे विशेष अधिक है। इसीप्रकार अकायिक, तेजस्कायिक और वायुकायिक जीवोंका भी स्वस्थान अल्पबहुत्व कहना चाहिये । बादर बनस्पतिकायिक पर्याप्त जीव सबसे स्तोक हैं। बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त जीव बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्तों से असंख्यातगुणे हैं। गुणकार क्या है ? असंख्यात लोक गुणकार है । बादर वनस्पतिकायिक जीव बादर वनस्पति कायिक अपर्याप्तोंसे विशेष अधिक हैं । सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अपर्याप्त जीव सबसे स्तोक हैं । सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्त जीव सूक्ष्म वनस्पतिकायिक
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