Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, ११९.] दव्वपमाणाणुगमे जोगमगणापमाणपरूवणं
[१०१ सासणसम्माइट्ठी असंजदसम्माइट्ठी दव्वपमाणेण केवडिया, ओघं ॥ ११८ ॥
तिरिक्ख-मणुससासण-असंजदसम्माइद्विणो जेण देवेसुप्पज्जमाणा पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्ता लम्भंति तेणेदेसिं पमाणपरूवणा ओघं, ओघेण समाणा ति वुत्तं होदि । एदेसिमवहारकालुप्पत्ती वुच्चदे । तं जहा- ओरालियमिस्ससासणसम्माइडिअवहारकालमावलियाए असंखेज्जदिभाएण गुणिदे वेउव्वियमिस्सकायजोगिसासणसम्माइट्टिअवहारकालो होदि । ओरालियकायजोगिअवहारकालमावलियाए असंखेजदिभाएण गुणिदे वेउव्वियमिस्सकायजोगिअसंजदसम्माइट्ठिअवहारकालो होदि । किं कारणं ? तिरिक्खाणमसंखेज्जादभागस्स देवेसुप्पत्तीदो। केण कारणेण वेउब्धियमिस्सकायजोगिसासणेहिंतो ओरालियमिस्सकायजोगिसासणसम्माइट्ठिणो असंखेज्जगुणा ? ण एस दोसो, कुदो ? देवेसुप्पज्जमाणतिरिक्खसासणेहिंतो तिरिक्खेसुप्पज्जमाणदेवसासणाणमसंखेज्जगुणत्तादो ।
आहारकायजोगीसु पमत्तसंजदा दव्वपमाणेण केवडिया, चदुवणं ॥ ११९ ॥
सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने है ? ओघप्ररूपणाके समान हैं ॥ ११८ ॥
चूंकि सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि तिर्यंच और मनुष्य देवोंमें उत्पन्न होते हुए पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण पाये जाते हैं, इसलिये इनके प्रमाणकी प्ररूपणा ओघ अर्थात् ओघप्ररूपणाके तुल्य होती है, यह इसका अभिप्राय है । अब इनके अपहारकालकी उत्पत्तिका कथन करते हैं। वह इसप्रकार है- औदारिकमिश्रकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालको आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर वैक्रियिकमिश्रकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है। असंयतसम्यग्दृष्टि औदारिककाययोगियोंके अवहारकालको आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर वैक्रियिकमिश्रकाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है, क्योंकि, तिर्यचोंके असंख्यातवें भागप्रमाण राशि देवों में उत्पन्न होती है।
शंका-वैक्रियिकमिश्रकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंसे औदारिकमिश्रकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणे किस कारणसे हैं ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, देवोंमें उत्पन्न होनेवाले तिर्यंच सासादन. सम्यग्दृष्टि जीवोंसे तिर्यंचोंमें उत्पन्न होनेवाले देव सासादनसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणे पाये जाते हैं।
आहारकाययोगियोंमें प्रमत्तसंयत जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? १ आहारकायजोगा चउवणं होंति एकसमयम्हि ॥ गो. जी. २७०
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