Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३८६] छक्खंडागमे जीवहाणं
[१, २, १०३. णिगोदा विसेसाहिया । वणप्फइकाइया विसेसाहिया ।
एवं कायमग्गणा समत्ता । जोगाणुवादेण पंचमणजोगि-तिण्णिवचिजोगीसु मिच्छाइट्ठी दव्वपमाणेण केवडिया ? देवाणं संखेज्जदिभागो ॥ १०३ ॥
___एत्थ तिण्हं चेव वचिजोगाणं संगहो किमट्ठो कदो ? ण एस दोसो। कुदो ? वचिजोग-असच्चमोसवचिजोगेहि सह एदेसिं तिण्हं वचिजोगाणं दव्यालावं पडि समाणत्ताभावादो। समाणालावाणमेगजोगो भवदि, ण भिण्णालावाणं । देवाणं जाणि दव्व-काल-खेत्तपमाणाणि पुव्वं परविदाणि तेसिं संखेजदिभागो एदेसिमट्टण्हं रासीणं पमाणं होदि । कुदो ? जदो एदे अट्ठ वि जोगा सण्णीणं चेव भवंति, णो असण्णीणं, तत्थ पडिसिद्धत्तादो। सणीसु वि पहाणा देवा चेव, सेसगदिसणीणं देवाणं संखेजदिभागत्तादो। तत्थ वि देवेसु पहाणो कायजोगरासी, मण-वचिजोगरासीदो संखेजगुणत्तादो। तं पि कधं जाणिजदे ?
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जीव वनस्पति पर्याप्त द्रव्यसे विशेष अधिक हैं। निगोद जीव सूक्ष्मवनस्पतिकायिक द्रव्यसे विशेष अधिक हैं। वनस्पतिकायिक जीव निगोद जीवों से विशेष अधिक हैं।
इसप्रकार कायमार्गणा समाप्त हुई। योगमार्गणाके अनुवादसे पांचा मनोयोगियों और तीन वचनयोगियों में मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? देवोंके संख्यातवें भाग हैं ॥ १०३ ॥
शंका- यहां तीन ही वचनयोगियोंका संग्रह किसलिये किया है ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, वचनयोगियों और अनुभय वचनयोगियोंके साथ इन तीन वचनयोगियोंकी द्रव्यालापके प्रति समानता नहीं पाई जाती है । समानालापोंका ही एक योग होता है, भिन्नालापोंका नहीं । देवोंका द्रव्य, काल और क्षेत्रकी अपेक्षा जो प्रमाण पहले कह आये हैं उसके संख्यातवें भाग इन आठ राशियोंका प्रमाण है। क्योंकि, ये आठों योग संशियोंके ही होते हैं असंक्षियोंके नहीं, क्योंकि, असंशियों में ये आठों योग प्रतिषिद्ध हैं । संझियोंमें भी प्रधान देव ही हैं, क्योंकि, शेष तीन गतिके संज्ञी जीव देवोंके संख्यातवें भाग ही हैं। वहां देवों में भी प्रधान काययोगियोंकी राशि है, क्योंकि, काययोगियोंका प्रमाण मनोयोगियों और वचनयोगियोंसे संख्यातगुणा है।
शंका-यह कैसे जाना जाना है ?
१ मनोयोगिनोxxमिध्यादृष्टयोऽसंख्येयाः श्रेणयः प्रतरासंख्येयभागप्रमिताः । स. सि. १, ८. २ प्रतिषु 'पहाणु' इति पाठः।
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