Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, १०८.] दव्वपमाणाणुगमे जोगमगणापमाणपरूवणं
[३९१ होदि । तम्हि संखेज्जरूवेहि गुणिदे वेउब्धियकायजोगिअवहारकालो होदि । तम्हि संखेजरूवेहि गुणिदे सच्चमोसवचिजोगिअवहारकालो होदि। तम्हि संखेञ्जरूवेहि गुणिदे मोसवचिजोगिअवहारकालो होदि । तम्हि संखेजस्वेहि गुणिदे सच्चवचिजोगिअवहारकालो होदि। तम्हि संखेजस्वेहि गुणिदे मणजोगिअवहारकालो होदि। तं हि संखेज्जरूवेहि खंडिय लद्धं तम्हि चेव पक्खित्ते असच्चमोसमणजोगिअवहारकालो होदि। तम्हि संखेजस्वेहि गुणिदे सच्चमोसमणजोगिअवहारकालो होदि । तम्हि संखेज्जरूवेहि गुणिदे मोसमणजोगिअवहारकालो होदि । तम्हि संखेज्जरूवेहि गुणिदे सच्चमणजोगिअवहारकालो होदि। तम्हि संखेज्जरूवेहि गुणिदे वेउब्बियमिस्सअवहारकालो होदि। किं कारणं ? जेण अंतोमुहुत्तमेत्तवेउब्धियमिस्सुवक्कमणकालादो संखेज्जवस्साउवदेवाणमुवकमणकालो संखेजगुणो तेण देवाणं संखेज्जदिभागो वेउब्धियमिस्सरासी होदि । होतो वि सच्चमणरासिस्स संखेज्जदिभागो। कुदो ? सच्चमणजोगद्धोवट्टिदसयलद्धासमासअंतोमुहुत्तमेतद्धाए आवलियगुणगारसंखेज्जरूवेहिंतो वेउबियमिस्सद्धोवट्टिदसंखेज्जवस्सेसु संखेज्जगुणरूबोवलंभादो।
संपहि ओघअसंजदसम्माइडिअवहारकालं संखेज्जरूवेहि खंडिय लद्धं तम्हि चेव होता है। इसे संख्यातसे गुणित करने पर उभय वचनयोगियोंका अवहारकाल होता है। इसे संख्यातसे गुणित करने पर मृषा वचनयोगियोंका अवहारकाल होता है। इसे संख्यातसे गुणित करने पर सत्यवचनयोगियोंका अवहारकाल होता है। इसे संख्यातसे गुणित करने पर मनयोगियोंका अवहारकाल होता है। इसे संख्यातसे खंडित करके जो लब्ध आवे उसे इसी मनोयोगियोंके अवहारकाल में मिला दने पर अनुभय मनोयोगियोंका अवहारकाल होता है । इसे संख्यातसे गुणित करने पर उभय मनोयोगियोंका अवहारकाल होता है। इसे संख्यातसे गुणित करने पर मृषा मनोयोगियोंका अवहारकाल होता है। इसे संख्यातसे गुणित करने पर सत्यमनोयोगियोंका अवहारकाल होता है। इसे संख्यातसे गुणित करने पर वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंका अवहारकाल होता है।
शंका-इसका क्या कारण है ?
समाधान-चूंकि अन्तर्मुहूर्तमात्र वैक्रियिकमिश्रके उपक्रमणकालसे संख्यात वर्षकी आयुवाले देवोंका उपक्रमणकाल संख्यातगुणा है, इससे तो यह सिद्ध हुआ कि वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंकी राशि देवोंके संख्यातवें भाग है, पर वह वैक्रियिकमिश्रकायोगियोंकी राशि देवोंके संख्यातवें भाग होते हुए भी सत्यमनोयोगियोंके प्रमाणके संख्यातवें भाग है, क्योंकि सत्यमनोयोगके कालसे सर्व कालके जोड़रूप अन्तर्मुहूर्त कालके अपवर्तित करने पर जो लब्ध आवे उसके लिये आवलीके गुणकार संख्यातसे वैक्रियिकमिश्रके कालसे अपवर्तित संख्यात वर्षों में संख्यातगुणी संख्या पाई जाती है।।
___ अब ओघ असंयतसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालको संख्यातसे खंडित करके जो
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