Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे जीवाणं
[ १, २, ८६.
रासिविसेसादो असंखेज्जगुणो वेइंदिय-तेईदियरा सिविसेसो वेईदियपज्जतेर्हितो असंखेज्ज
गुणोति ।
अप्पा बहुअं तिविहं सत्थाण- परत्थाण- सव्वपरत्थानभेएण । एत्थ ताव सत्थाणप्पा बहुअ वुच्चदे । सव्त्रत्थोवा बादरेइंदियपज्जत्ता । तेसिमपज्जत्ता असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? असंखेजा लोगां । बादरइंदिया विसेसाहिया । केत्तियमेत्ते ? सर्गपज्जत्तपक्खित्तमे तेण । सव्त्रत्थोवा मुहुमेईदियअपत्ता । तेसिं पज्जत्ता संखेज्जगुणा । को गुणगारो १ संखेज्जा समया । सुहुमेइंदिया विसेसाहिया । केत्तियमेत्तण ? सगअपज्जतमेत्तेण । सव्वत्थोवो वेईदियअवहारकालो । विक्खंभसूई असंखे जगुणा | को गुणगारो ? सगविक्खंभसूईए असंखेज्जदिभागो । को पडिभागो ? सगअवहारकाला | अहंचा सेढीए असंखेज्जदिभागो असंखेज्जाणि सेढिपढमवग्गमूलाणि । को पडिभागो ?
अवहारकालवग्गो । सो वि असंखेज्जाणि घणंगुलाणि सूचिअंगुलस्त असंखेज्जदिभागमेताणि । सेठी असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? अवहारकालो । दव्वमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? विक्खंभसूई । पदरमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? अवहारकालो। लोगो असंखेज
और चतुरिन्द्रिय राशिके विशेषसे द्वीन्द्रिय और त्रीन्द्रिय राशिका विशेष असंख्यातगुणा है उसीप्रकार द्वन्द्रिय पर्याप्त राशि से द्वीन्द्रिय और त्रीन्द्रिय राशिका विशेष असंख्यातगुणा है। स्वस्थान, परस्थान और सर्व परस्थान के भेद से अल्पबहुत्व तीन प्रकारका है । उनमें से यहां पर पहले स्वस्थान अल्पबहुत्वको कहते हैं । बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीव सबसे स्तोक हैं । बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीव उनसे असंख्यातगुणे हैं । गुणकार क्या है ? असंख्यात लोक गुणकार है । बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तोंसे बादर एकेन्द्रिय जीव विशेष अधिक हैं। कितनेमात्र विशेषसे अधिक हैं ? अपनी पर्याप्त राशिको प्रक्षिप्त करने रूप विशेषसे अधिक हैं। सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीव सबसे स्तोक हैं । सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त जीव उनसे संख्यातगुणे हैं । गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है । सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तोंसे विशेष अधिक है । कितनेमात्र विशेषसे अधिक हैं ? सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तोंका जितना प्रमाण है तम्मात्र विशेषसे अधिक है । द्वीन्द्रियोंका अवहारकाल सबसे स्तोक है । अवहारकालसे विष्कंभसूची असंख्यातगुणी है। गुणकार क्या है ? अपनी विष्कंभसूचीका असंख्यातवां भाग गुणकार है । प्रतिभाग क्या है ? अपना अवहारकाल प्रतिभाग है । अथवा, जगश्रेणीका असंख्यातवां भांग गुणकार है जो जगश्रेणीके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है । प्रतिभाग क्या है ? अपने अवहारकालका वर्ग प्रतिभाग है । वह प्रतिभाग भी सूच्यंगुलके असंख्यातवें भागमात्र असंख्यात घनांगुलप्रमाण है । विष्कंभसूचीसे जगश्रेणी असंख्यातगुणी है । गुणकार क्या है ? अपना अवहारकाल गुणकार है । जगश्रेणीसे द्वीन्द्रियोंका द्रव्यप्रमाण असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? अपनी विष्कंभसूची गुणकार हैं । द्वीन्द्रियोंके द्रव्यले जगप्रतर असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? अपना अवहारकाल गुणकार है । जगप्रतरसे लोक असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है । जगश्रेणी
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