Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, ८७.] दव्वपमाणाणुगमे पुढविकाइयादिपमाणपरूवणं
[३४१ तदुवरिमवग्गे भागे हिदे तेउक्काइयरासी आगच्छदि । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स अद्धच्छेदणए कदे वि तेउक्काइयरासी आगच्छदि । घणाघणे' वत्तइस्सामो । तेउ. क्काइयरासिणा तेउक्काइयरासिउवरिमवग्गसमाणअट्ठरूववग्गं गुणेऊग तस्सुवरिमवग्गं मोतूण तदुवरिमवग्गसमाणवेरूववग्गं गुणेऊण तस्सुवरिमवग्गं मोत्तूण तदुवरिमवग्गे भागे हिदे तेउक्काइयरासी आगच्छदि । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स अद्धच्छेदणए कदे वि तेउक्काइयरासी अवचिट्ठदे। विहज्जमाणवग्गाणं असंखेजदिभाएण गहिदगहिदो गहिदगुणगारो च वत्तव्यो । एवं तेउक्काइयपरूवणा समत्ता।।
तेउक्काइयरासिमसंखेज्जलोगेण भागे हिदे लद्धं तम्हि चेव पक्खित्ते पुढविकाइयरासी होदि । तम्हि असंखेज्जलोगेण भागे हिंदे लद्धं तम्हि चेव पविखत्ते आउकाइयरासी होदि । तम्हि असंखेज्जलोगेण भागे हिदे लद्धं तम्हि चेव पक्खिते वाउकाइयरासी होदि । एदेसिं तिणं रासीणं अवहारकालस्सुप्पायण
पर तेजस्कायिक राशिका प्रमाण आता है। उक्त भागहारके जितने अर्धच्छेद हो उतनीवार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी तेजस्कायिक राशिका प्रमाण आता है।
___अब घनाघनमें उपरिम विकल्पको बतलाते हैं- तेजस्कायिक राशिले तेजस्कायिक राशिके उपरिम वर्गके समान घनके उपरिम वर्गको गुणित करके पुनः तेजस्कायिक राशिके उपरिम वर्गको छोड़कर उसके उपरिम वर्गके समान द्विरूपके वर्गको गुणित करके तेजस्कायिक राशिके उपरिम धर्गके उपरिम वर्गको छोड़कर उसके उपरिम वर्गमें भाग देने पर तेजस्कायिक राशिका प्रमाण आता है। उक्त भागहारके जितने अर्धच्छेद हो उतनीवार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी तेजस्कायिक राशिका प्रमाण आता है। विभज्यमान वर्गोंके असंख्यातवें भागरूप तेजस्कायिक राशिके द्वारा गृहीतगृहीत और गृहीतगुणकारका कथन करना चाहिये। इसप्रकार तेजस्कायिक जीवराशिकी प्ररूपणा समाप्त हुई।
तेजस्कायिक राशिको असंख्यात लोकोंके प्रमाणसे भाजित करने पर जो लब्ध आवे उसे उसी तेजस्कायिक राशिके प्रमाणमें प्रक्षिप्त करने पर पृथिवीकायिक राशिका प्रमाण होता है । इस पृथिवीकायिक राशिको असंख्यात लोकोंके प्रमाण से भाजित करने पर जो लब्ध आवे उसे उसी पृथिवीकायिक राशिमें मिला देने पर अप्कायिक राशिका प्रमाण होता है। इस अप्कायिक राशिको असंख्यात लोकोंके प्रमाणले भाजित करने पर जो लब्ध आवे उसे उसी अपकायिक राशिमें मिला देने पर वायुकायिक राशिका प्रमाण होता है।
अब इन तीनों राशियोंके अपहारकालके उत्पन्न करनेकी विधिको बतलाते
१ प्रतिषु · वेरूवे' इति पाठः ।
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