Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 438
________________ १, २, ८७.] दव्वपमाणाणुगमे पुढविकाइयादिपमाणपरूवणं [३४५ घणलोग दाऊण अण्णोण्णभत्थे कए बादरतेउकाइयरासी उप्पज्जदि । अहवा बादरतेउअद्धच्छेदणए बादरवणप्फदिपत्तेयसरीरद्धछेदणएहिंतो सोहिय अवसेसरासिं विरलिय विगं करिय अण्णोण्णब्भत्थरासिणा बादरवणप्फइपत्तेयसरीररासिम्हि भागे हिदे बादरतेउकाइयरासी उप्पज्जदि । अहवा बादरवणप्फइपत्तेयरासिस्स अहियद्धच्छेयणयमेत्ते' अच्छेयणए कए बादरतेउकाइयरासी उप्पज्जदि । अहवा घगलोगछेदणएहि अहियद्धछेदणएसु ओवट्टिदेसु तत्थ लद्धं विरलेऊण एक्केक्कस्स रुवस्स घणलोगं दाऊण अण्णोण्णब्भत्थे कए जो रासी तेण बादरवणप्फइपत्तेयसरीररासिम्हि भागे हिदे बादरतेउकाइयरासी होदि । एवं बादरणिगोदपदिट्टिद-बादरपुढविकाइय-बादरआउकाइय-बादरवाउकाइयाणं अप्पप्पणो अद्धच्छेदणएहितो बादरतेउकाइयरासी उप्पादेदव्या । एवं बादरतेउकाइयरासिस्स सत्चारसविहा परूवणा कदा । भाजित करने पर जो लन्ध आवे उसे विरलित करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति घनलोकको देकर परस्पर गुणित करने पर बादर तेजस्कायिक राशि उत्पन्न होती है। अथवा, बादर तेजस्कायिक राशिके अर्धच्छेदोंको बादर वनस्पति प्रत्येकशरीर जीवोंके अर्धच्छेदोंमेंसे घटाकर जो राशि शेष रहे उसे विरलित करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकको दोरूप करके परस्पर गुणित करनेसे जो राशि उत्पन्न हो उससे बादर वनस्पति प्रत्येकशरीर जीवोंकी राशिके भाजित करने पर बादर तेजस्कायिक राशि उत्पन्न होती है । अथवा, बादर वनस्पति प्रत्येकराशिके जितने अधिक अर्धच्छेद हों उतनीवार बादर वनस्पति प्रत्येकशरि राशिके अर्धच्छेद करने पर भी बादर तेजस्कायिक राशि उत्पन्न होती है। अथवा, घनलोकके अर्धच्छेदोंसे अधिक अर्धच्छेदोंके भाजित करने पर वहां जो लब्ध आवे उसे विरलित करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति घनलोकको देयरूपसे देकर परस्पर गुणित करने पर जो राशि आवे उससे बादर वनस्पति प्रत्येकशरीर जीवराशिके भाजित करने पर बादर तेजस्कायिक राशि आती है। इसीप्रकार बादर निगोदप्रतिष्ठित, बादर पृथिवीकायिक, बादर अप्कायिक और बादर वायुकायिक जीवोंके अपने अपने अर्धच्छेदोंसे बादर तेजस्कायिक राशि उत्पन्न कर लेना चाहिये। इसप्रकार बादर तेजस्कायिक राशिकी सत्रह प्रकारकी प्ररूपणा की। विशेषार्थ-ऊपर पांच प्रकारसे तेजस्कायिक जीवराशि उत्पन्न करके बतला आये हैं। प्रथमवार तेजस्कायिक जीवराशिके अर्धच्छेदोंका और दूसरीवार धनलोकके अर्धच्छेदोंका आश्रय लेकर तेजस्कायिक जीवराशि उत्पन्न की गई है। अन्तिम तीन प्रकारसे तेजस्कायिक जीवराशिके उत्पन्न करने में बादर वनस्पति प्रत्येकशरीर जीवराशिके अर्धच्छेदोंकी मुख्यता १ प्रतिषु · अद्धच्छेयणयमत्ते' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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