Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३३०] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, २, ८७. एत्थ पुढवी काओ सरीरं जेसिं ते पुढवीकाया ति ण वत्तव्यं, विग्गहगईए वट्टमाणाणं जीवाणमकाइत्तप्पसंगादो। पुणो कधं वुच्चदे ? पुढविकाइयणामकम्मोदयवतो जीवा पुढविकाइया त्ति वुचंति । पुढविकाइयणामकम्मं ण कहिं वि वुत्तमिदि चे ण, तस्स एइंदियजादिणामकम्मतब्भूदत्तादो । एवं सदि कम्माणं संखाणियमो सुत्तसिद्धो ण घडदि ति वुत्ते वुच्चदे । ण सुत्ते कम्माणि अद्वैव अद्वेदालसयमेवेत्ति, संखंतरपडिसेहविधाययएवकाराभावादो। पुणो केत्तियाणि कम्माणि होति ? हय-गय-विय-फुल्लंधुव-सलह-मक्कुणुद्देहि-गोमिंदादीणि जत्तियाणि कम्मफलाणि लोगे उवलभते कम्माणि वि तत्तियाणि चेव । एवं सेसकाइयाणं पि वत्तव्यं । बादरणामकम्मोदयसहिदपुढविकाइयादओ बादरा । थूलसरीराणं जीवाणं बादरतं किण्ण बुच्चदे ? ण, बादरेइंदियओगाहणादो
. यहां पर पृथिवी है काय अर्थात् शरीर जिनके उन्हें पृथिवीकाय जीव कहते हैं, ऐसा नहीं कहना चाहिये, क्योंकि, पृथिवीकायका ऐसा अर्थ करने पर विग्रहगतिमें विद्यमान जीवोंके अकायित्वका अर्थात् पृथिवीकायित्वके अभावका प्रसंग आ जाता है।
शंका-तो फिर पृथिवीकाधिकका अर्थ कैसा कहना चाहिये?
समाधान-पृथिवीकाय नामकर्मके उदयसे युक्त जीवोंको पृथिवीकायिक कहते हैं, इसप्रकार पृथिवीकायिक शब्दका अर्थ करना चाहिये।
शंका-पृथिवीकायिक नामकर्म कहीं भी अर्थात् कर्मके भेदों में नहीं कहा गया है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, पृथिवीकाय नामका कर्म एकेन्द्रिय नामक नामकर्मके भतिर अन्तर्भूत है।
शंका-यदि ऐसा है तो सूत्रसिद्ध कर्मोंकी संख्याका नियम नहीं रह सकता है ?
समाधान-ऐसा प्रश्न करने पर आचार्य कहते हैं कि सूत्रमें कर्म आठ ही अथवा एकसौ अड़तालीस ही नहीं कहे हैं, क्योंकि, आठ या एकसौ अड़तालीस संख्याको छोड़कर दूसरी संख्याओंका प्रतिषेध करनेवाला 'एव' ऐसा पद सूत्रमें नहीं पाया जाता है।
शंका- तो फिर कर्म कितने हैं ?
समाधान-लोकमें घोड़ा, हाथी, वृक (भेड़िया) भ्रमर, शलभ, मत्कुण, उद्देहिका (दीमक), गोमी और इन्द्र आदि रूपसे जितने कर्मोंके फल पाये जाते हैं, कर्म भी उतने ही होते हैं।
इसीप्रकार शेष कायिक जीवोंके विषयमें भी कथन करना चाहिये। उनमें बादर नामकर्मके उदयसे युक्त पृथिवीकायिक आदि जीव बादर कहलाते हैं ।
शंका-स्थूल शरीरवाले जीवोंको बादर क्यों नहीं कहा जाता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, वेदनक्षेत्रविधानसे बादर एकेन्द्रियोंकी अवगाहनासे पुढवीकाइया जाव असंखिचा वाउकाइया । अनु. सू. १४१, पत्र १७९.
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