Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२५२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, २, ४४. संजदाणं पमाणं तेरहकोडीओ के वि आइरिया सासणसम्माइणिं पमाणं पण्णारस कोडीओ हवंति सम्मामिच्छाई ?पमाणं तत्तो दुगुणमिदि भणंति । पुबिल्लपमाणमैत्थ बेत्तव्वं । किं कारणं ? आइरियपरंपरागदादो । वुत्तं च
तेरह कोडी देसे बावणं सासणे तु यया ।
मिस्से वि य तदुगुणा असंजदे सत्तकोडिसया ॥ ६८ ॥ अहवा---
तेरह कोडी देसे पण्णासं सासणे मुणेयव्वा ।
मिस्से वि य तदुगुणा असंजदे सत्तकोडिसया ॥ ६९ ।) पमत्तसंजदप्पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति ओघं ॥४४॥
एदस्स सुत्तस्स अत्थो पुव्वं परूविदो त्ति इह ण बुच्चदे । कुदो ? मणुसगदिवदिरित्तसेसगईसु पमत्तादिगुण हाणाणमसंभवादो। मणुसेसु पमत्तादीणं ओघपरूवणा चेव ।
करोड़ है। कितने ही आचार्य सासादनसम्यग्दृष्टि मनुष्योंका प्रमाण पचास करोड़ कहते हैं । सम्यग्मिथ्यादृष्टि मनुष्योंका प्रमाण सासादनसम्यग्दृष्टि मनुष्यों के प्रमाणसे दुना कहते हैं । परंतु यहां पर पूर्वोक्त प्रमाणका ही ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि, पूर्वात प्रमाण आचार्य परंपरासे आया हुआ है। कहा भी है
संयतासंयतमें तेरह करोड़, सासादनमें बावन करोड़, मिश्रमें सासादनके प्रमाणसे दूने और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें सातसौ करोड़ मनुष्य जानना चाहिये ॥ ३८ ॥
अथवा
संयतासंयतमें तेरह करोड़, सासादनमें पचास करोड़, मिश्रमें सासादनके प्रमाणसे दृने और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें सातलौ करोड मनुष्य जानना चाहिये । ६९ ॥
प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानमें मनुष्य सामान्य प्ररूपणाके समान संख्यात हैं ॥ ४४ ॥
इस सूखका अर्थ पहले कह आये हैं, इसलिये यहां नहीं कहा जाता है, क्योंकि, मनुष्य गतिको छोड़कर शेष तीन गतियों में प्रमत्तसंयत आदि गुणस्थानोंका होना असंभव है। अतः मनुष्यों में प्रमत्तसंयत आदिका प्रमाणप्ररूपण सामान्य प्ररूपणाके समान ही है।
१गो . जी. ६४२. स. सि. १,८,टि.। २ प्रतिषु तदुउणा' इति पाठः । ३ प्रमत्तावीना सामान्योता संख्या । स. सि...
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