Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
३०४ ]
छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, २, ७३.
ज्जाणि सेढिपढमवग्गमूलाणि । को पडिभागो ? असंखेज्जाणि घर्णगुलाणि पडिभागो । केत्तियमेताणि ? संखेज्जसूईपढमवग्गमूलमेताणि । वाणवेंतर मिच्छाइदिव्वं संखेज्जगुणं । को गुणगारो ? संखेज्जसमया । जोइसियमिच्छाइदिव्यं संखेज्जगुणं । को गुणगारो ? संखेज्जसमया । देवमिच्छाइदिव्त्रं विसेसाहियं । के त्तियमेतेण ? संखेज्जरूवखंडिदमे तेण । पंचिदियतिरिक्खपज्जत्तदव्त्रं संखेज्जगुणं । को गुणगारो ? संखेज्जसमया । पंचिदियतिरिक्ख अपज्जत्तदव्त्रम संखेञ्जगुणं । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेजदिभागो । पंचिंदियतिरिक्खमिच्छाइट्ठिदव्यं विसेसाहियं । केत्तियमेतेण ? आवलियाए असंखेज्जदिभागखंडिदमेत्तेण । पदरमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? सगअवहारकालो | लोगमसंखेज्जगुणं. को गुणगारो ? सेठी । सिद्धा अनंतगुणा । को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अनंतगुणो सिद्धाणमसंखेज्जदिभागो । को पडिभागो ? लोगपडिभागो । एइंदिय - विगलिंदिया अनंतगुणा । को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अनंतगुणो सिद्धेहिं वि अनंतगुणो जीववग्गमूलस्स
असंख्यातगुणा है | गुणकार क्या है ? जगश्रेणीका असंख्यातवां भाग गुणकार है जो जगश्रेणीके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है । प्रतिभाग क्या है ? असंख्यात घनांगुल प्रतिभाग है। उन असंख्यात घनांगुलोंका प्रमाण कितना है ? सूच्यंगुलके संख्यात प्रथम वर्गमूलका जितना प्रमाण हो उतना है । पंचेन्द्रिय तिर्यच योनिमती मिथ्यादृष्टियोंके द्रव्यसे वाणव्यन्तर मिथ्यादृष्टियोंका द्रव्य संख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है । वाणव्यन्तर मिथ्यादृष्टियोंके द्रव्यसे ज्योतिषी मिध्यादृष्टियों का द्रव्य संख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है । ज्योतिषी मिथ्यादृष्टियोंके द्रव्यसे देव मिथ्यादृष्टि द्रव्य विशेष अधिक है । कितनेमात्र विशेषले अधिक है ? संख्यात से ज्योतिषी मिथ्यादृष्टियों के प्रमाणको खंडित करके जो एक भाग लब्ध आवे तन्मात्र विशेषसे अधिक है । देव मिथ्यादृष्टि द्रव्यसे पंचेन्द्रिय तिर्यच पर्याप्त मिथ्यादृष्टियों का द्रव्य संख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है । तिर्यच पर्याप्त मिथ्यादृष्टि द्रव्यसे पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्त मिथ्यादृष्टि द्रव्य असंख्यातगुणा है | गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है । पंचेन्द्रिय तिर्यच अपर्याप्त मिथ्यादृष्टि द्रव्यसे पंचेन्द्रिय तिर्यंच मिथ्यादृष्टि द्रव्य विशेष अधिक है। कितनेमात्र विशेष से अधिक है ? आवलीके असंख्यातवें भागसे पंचेन्द्रिय तिर्येच अपर्याप्त मिथ्यादृष्टि द्रव्यको खंडित करके जो एक खंड लब्ध आवे तन्मात्र विशेषसे अधिक है। पंचेन्द्रिय तिर्यंच मिथ्यादृष्टि द्रव्यसे जगप्रतर असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? अपना अवहारकाल गुणकार है । जगप्रतरसे लोक असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? जगश्रेणी गुणकार है लोकसे सिद्ध अनन्तगुणे हैं। गुणकार क्या है ? अभव्यसिद्धोंसे अनन्तगुणा और सिद्धों का असंख्यातवां भाग गुणकार है । प्रतिभाग क्या है ? लोक प्रतिभाग है । सिद्धोंसे एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीव अनन्तगुणे हैं । गुणकार क्या है ? अभव्यसिद्धोंसे अनतगुणा, सिद्धोंसे भी अनन्तगुणा, जीवराशिके प्रथम वर्गमूलसे भी अनन्तगुणा और भव्यसिद्ध जीवोंके अनन्त
I
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org