Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, ८२.] दव्वपमाणाणुगमे वेइंदियादिपमाणपरूवणं
[३१५ 'जहा उद्देस तहा णिद्देसो' त्ति णायादो अंगुलस्स असंखेज्जदिभागस्स वग्गो पंचिंदियाणं जगपदरस्स पडिभागो होदि । सूचिअंगुलस्स संखेज्जदिभागस्स वग्गो जगपदरस्स पडिभागो होदि पंचिंदियपज्जत्ताणं । पडिभागो भागहारो त्ति एयट्ठो। विगलिंदियसुत्तेण सह पंचिंदियसुत्तं किमिदि ण वुत्तं ? ण एस दोसो, उवरिमगुणपडिवण्णसुत्तस्स पंचिंदियत्ताणुवट्ठावणकृत्तादो पुध पंचिंदियसुत्तं वुच्चदे । तत्थ ट्ठियपंचिंदियणिद्देसो किमिदि णाणुवट्टाविज्जदे ? ण, एगजोगणिहिट्ठाणमेगदेसस्स अणुवट्टणाभावादो।
__संपहि उवरि वुच्चमाणअप्पाबहुगअणियोगद्दारसुत्तबलेण पुवाइरिओवएसबलेण च एदेण सुत्तेण सूचिदविगल-सयलिंदियाणमवहारकालविसेसे भणिस्सामो। तं जहा-आवलियाए असंखेज्जदिभाएण सूचिअंगुले भागे हिदे तत्थ जं लद्धं तं वग्गिदे वेइंदियाणमवहारकालो होदि । तम्हि आवलियाए असंखेजदिभाएण भागे हिदे लद्धं तम्हि चेव पक्खित्ते वेइंदियअपजत्तअवहारकालो होदि । तं आवलियाए असंखेजदिभाएण भागे हिदे लद्धं तम्हि चेव
'उद्देशके अनुसार निर्देश होता है। इस न्यायके अनुसार अंगुलके असंख्यातवें भागका वर्ग पंचेन्द्रिय जीवोंका प्रमाण लानेके लिये जगप्रतरका प्रतिभाग है, और सूच्यंगुलके संख्यातवें भागका वर्ग पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंका प्रमाण लानेके लिये जगप्रतरका प्रतिभाग है । प्रतिभाग और भागहार ये दोनों एकार्थवाची शब्द हैं।
शंका-विकलेन्द्रियों के प्रमाणके प्रतिपादक सूत्रके साथ पंचेन्द्रियोंके प्रमाणका प्रतिपादक सूत्र क्यों नहीं कहा ?
समाधान- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, आगे कहे जानेवाले गुणप्रतिपन्न जीवोंके सूत्र में पंचेन्द्रियत्वकी अनुवृत्ति करनेके लिये पृथक्पसे पंचेन्द्रियोंके प्रमाणका प्रतिपादक सूत्र कहा।
शंका-विकलेन्द्रियोंके प्रमाणके प्रतिपादक सूत्रके साथ पंचेन्द्रियोंके प्रमाणके प्रतिपादक सूत्रके एकत्र कर देने पर वहां स्थित पंचेन्द्रिय पदके निर्देशकी अनुवृत्ति क्यों नहीं होती है?
समाधान-नहीं, क्योंकि, एक योगरूपसे निर्दिष्ट अनेक पदों से एक देशकी अनुवृत्ति नहीं होती है। ___ अब आगे कहे जानेवाले अल्पबहुत्व अनुयोगद्वारके सूत्रके बलसे और पूर्वाचार्योंके उपदेशके बलसे इस सूत्रके द्वारा सूचित विकलेन्द्रिय और सकलेन्द्रिय जीवोंके अवहारकाल विशेषोंको कहते हैं। वे इसप्रकार हैं- आवलीके असंख्यातवें भागसे सूच्यंगुलके भाजित करने पर जो लब्ध आवे उसको वर्गित करने पर द्वीन्द्रिय जीवोंका अवहारकाल होता है। द्वीन्द्रियोंके अवहारकालको आवलीके असंख्यातवें भागसे भाजित करने पर जो लब्ध आवे उसे उसी दीन्द्रियोंके अपहारकालमें मिला देने पर द्वीन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंको अवहारकाल होता है। इस द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकोंके अवहारकालको आवलीके असंख्यातवें भागसे भाजित
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