Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२०६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, २, ७५. अणंताणताहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि ण अवहिति कालेण ॥७५॥
अदीदकालो ओसप्पिणि-उस्सप्पिणिपमाणेण कीरमाणो अणतोसप्पिणि-उस्सप्पिणिपमाणं होदि । तेण तारिसेण वि अदीदकालेण एदे णव वि रासीओ ण अवहिरिजंति । एइंदिएहिंतो एगजीवमाई काऊण जा उक्कस्सेण पदररस असंखेजदिभागमेसा जीवा तसकाइएसुप्पजंति । तसकाइया वि एगजीवमाई काऊण जा उक्कस्सेण पदरस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता एईदिएसुप्पजंति । बादरेइंदिया विसयं पडि अणंता सुहुमेइंदिएसुप्पजति । सुहमेइंदिया वि तत्तिया चेव बादरेइंदिएसुप्पज्जति । एवं चेव सव्वेसि पज्जत्ताणमपज्जत्ताणं च वत्तव्यं । तदो सरिसाय-व्ययत्तादो एदेसिं णवण्हं रासीणं वोच्छेदो तिसु वि कालेसु णत्थि त्ति अणुत्तसिद्धीदो एदं सुत्तं णादरेदधमिदि । एत्थ परिहारो वुच्चदे । तं जहाएदेसि णवण्हं रासीणं जदि आय-व्यया सरिसा हवंति तो एदं सुत्तं णादरेदव्यं भवदि । किं तु आयादो वओ अब्भहिओ। कुदो ? तत्तो णिप्फदिऊण तसेसुप्पज्जिय सम्मत्तं घेत्तूण किया है । शेष कथन जिसप्रकार मूलोघ सूत्रमें कह आये हैं उसप्रकार जानना चाहिये ।
कालप्रमाणकी अपेक्षा पूर्वोक्त एकेन्द्रिय जीव आदि नौ राशियां अनन्तानन्त अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियोंके द्वारा अपहत नहीं होती हैं ॥ ७५॥
अतीत कालको अवसर्पिणी और उत्सर्पिणीके प्रमाणसे करने पर अनन्त अवसर्पिणी और उत्सर्पिणीप्रमाण अतीत काल होता है। इसप्रकारके भी उस अतीत कालके द्वारा ये नौ राशियां अपहृत नहीं होती हैं।
शंका-एकेन्द्रियोंमेंसे एक जीवको आदि करके उत्कृष्टरूपसे जगप्रतरके असंख्यातवें भागप्रमाण जीव त्रसकायिकोंमें उत्पन्न होते हैं और त्रसकायिक भी एक जीवको आदि करके उत्कृष्टरूपसे जगप्रतरके असंख्यातवें भागप्रमाण जीव एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न होते हैं । विषयकी अपेक्षा अनन्त बादर एकेन्द्रिय जीव सूक्ष्म एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं और सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव भी उतने ही बादर एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं । इसीप्रकार सभी पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंका भी कथन करना चाहिये । इसप्रकार समान आय और व्यय होनेसे इन नौ राशियोंका विच्छेद तीनों भी कालोंमें नहीं होता है, इसलिये यह कथन अनुक्तसिद्ध होनेसे यह सूत्र ग्रहण करने योग्य नहीं है ?
समाधान-आगे पूर्वोक्त कथनका परिहार किया जाता है। वह इसप्रकार है- इन पूर्वोक्त नौ राशियोंका आय और व्यय यदि समान हो तो यह सूत्र ग्रहण करने योग्य नहीं होते। किन्तु इन राशियोंका आयसे व्यय अधिक है, क्योंकि, पूर्वोक्त नौ राशियों में से निकल कर और त्रसोंमें उत्पन्न होकर तथा सम्यक्त्वको ग्रहण करके जिन संसारी जीवोंने एकेन्द्रिय
१अ प्रतौ णादव्वेदव्वं ' आ-क-प्रत्योः । णादवेदव्वं ' इति पाठः ।
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