Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, ४५.]
दव्यपमाणाणुगमे मणुसगदिपमाणपरूवर्ण
विशेषार्थ-यद्यपि 'विक्खंभवग्गदहगुणकरणी वट्टस्स परिरओ होदि' अर्थात् किसी वृत्त क्षेत्रकी परिधि लानेके लिये पहले उस क्षेत्रका जितना विस्तार हो उसका वर्ग कर ले। अनन्तर उस घर्गित राशिको दशसे गणित करके उसका वर्गमल निकाल ले। इसप्रकार जो वर्गमूलका प्रमाण होगा वही उस गोल क्षेत्रकी परिधिका प्रमाण होगा। इस नियमके अनुसार एक लाख विस्तारवाले जम्बूद्वीपकी परिधिका प्रमाण तीन लाख सोलह हजार दोसौ सत्ताईस योजन, तीन कोस, एकसौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुलसे कुछ अधिक आता है। परंतु धयलाकारने साढ़े तेरह अंगुलसे कुछ अधिकके स्थानमें साढ़े तेरह अंगुलसे कुछ कम ग्रहण किया है। उन्होंने कुछ कमका प्रमाण ३५ मेंसे ३ ४ ५८ कम बतलाया प्रतीत होता है । यद्यपि इसका निश्चित कारण प्रतीत नहीं होता है, फिर भी इसे ग्रहण करके उक्त परिधिके प्रमाणके ऊपरसे जम्बूद्वीपका क्षेत्रफल लानेके लिये 'वासचउत्थाहदो दु खेत्तफलं' अर्थात् परिधिके प्रमाणको व्यासकी चौथाईरूप प्रमाणसे गुणित कर देने पर क्षेत्रफलका प्रमाण होता है, इस नियमके अनुसार पच्चीस हजारसे गुणित कर देने पर जम्बूद्वीपका क्षेत्रफल आ जाता है। यहां सर्व क्षेत्रफल योजनों में लाने के लिये यथायोग्य प्रक्रिया कर लेना चाहिये। अब यहां पर दो समुद्रोंके क्षेत्रफलको छोड़कर जम्बूद्वीप, धातकीखंडद्वीप और पुष्करार्धद्वीपका सम्मिलित क्षेत्रफल लाना है, अतएव 'बाहिरसूईवगं' इत्यादि करणसूत्रसे ढाई द्वीपके जम्बूद्वीपप्रमाण खंड लाने पर वे १३२९ होते हैं। इनसे उपर्युक्त क्षेत्रफलके गुणित करने पर दो समुद्रोंके क्षेत्रफलके विना ढाई द्वीपका क्षेत्रफल योजनोंमें आता है। इसके प्रतरांगुल बनानेके लिये एक योजनके चार कोस, एक कोसके दो हजार धनुष, एक धनुषके चार हाथ और एक हाथके चौवीस अंगुलोंके वर्गसे गुणा कर देना चाहिये, क्योंकि, पूर्वोक्त राशि वर्गात्मक है अतएव वर्गात्मक राशिके गुणकार और भागहार भी वर्गात्मक ही होना चाहिये। इस प्रक्रियासे दो समुद्रोंके क्षेत्रफलके विना ढाई द्वीपका क्षेत्रफल प्रमाणप्रतरांगुलोंमें आ जाता है। आगे गणितद्वारा उसीका स्पष्टीकरण किया गया है। यहांधवलाके उपलभ्य पाठमें जो संशोधनकी कल्पना पादटिप्पणमें व्यक्त की गई है, उसीके अनुसार अर्थ किया गया है क्योंकि मूलकी अंकसंदृष्टि की सार्थकता तभी सिद्ध होती है जो कि निम्न उदाहरणसे स्पष्ट हैउदाहरण–३१६२२७ यो., ३ को., १२८ ध,, और कुछ कम १३% अंगुल जो श्री धव
लके अनुसार २७-१४ १५ अंगुल होते हैं। यह जम्बूद्वीपकी परिधि है। जम्बूद्वीपका क्षेत्रफल लानेके लिये उपयुक्त प्रमाणमें जम्बूद्वीपके व्यासके चतुर्थाश अर्थात् पच्चीस हजारसे गुणा करना चाहिये जिससे जम्बूद्वीपका क्षेत्रफल आया
८६०७०६२०३७२४५०२२५ प्रतर योजन
१०८८७१६८
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