Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, ५३ ] दव्वपमाणाणुगमे देवगदिपमाणपखवणं
[२६७ एत्थ देवगइगहणेण सेसगइपडिसेहो कदो हवदि । देवेसु त्ति क्यणेण तत्थ द्विददव्वपडिसेहो कदो हवदि। मिच्छाइट्टि त्ति वयणेण सेसगुणहाणपडिसेहो कदो हवदि। दव्यपमाणेणेत्ति वयणेण खेत्तादिपडिसेहो कदो हवदि । केवडिया इदि वयणेण सुत्तस्स पमाणत्तं सूचिदं हवदि। असंखेज्जा इदि वयणेण संखेजाणताणं पडिणियत्ती कदो हवदि।
किमसंखेज णाम ? जो रासी एगेगरूवे अवणिजमाणे णिहादि सो असंखेजो। जो पुण ण समप्पइ सो रासी अणंतो । जदि एवं तो वयसहिदसक्खयअद्धपोग्गलपरियट्टकालो वि असंखेजो जायदे ? होदु णाम । कथं पुणो तस्स अद्धपोग्गलपरियदृस्स अणंतववएसो ? इदि चे ण, तस्स उवयारणिबंधणत्तादो। तं जहा- अणंतस्स केवलणाणस्स विसयत्तादो अद्धपोग्गलपरियकालो वि अणंतो होदि । केवलणाणविसयत्तं पडि विसेसाभावा सव्वसंखाणाणमणंतत्तणं जायदे ? चे ण, ओहिणाणविसयवदिरित्तसंखाणे अणण्णविसयत्तणेण तदुवयारपवुत्तीदो। अहवा जं संखाणं पंचिंदियविसओ तं संखेज्ज
सूत्रमें देवगति पदके ग्रहण करनेसे शेष गतियोंका प्रतिषेध हो जाता है। 'देवोंमें ' ऐसा वचन देनेसे देवलोक में स्थित अन्य द्रव्योंका प्रतिषेध हो जाता है । 'मिथ्यादृष्टि' इस वचनसे अन्य गुणस्थानोंका प्रतिषेध हो जाता है। 'द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा ' इस वचनसे क्षेत्र आदि प्रमाणों का प्रतिषेध हो जाता है । 'कितने हैं ' इस पचनसे सूत्रकी प्रमाणता सूचित हो जाती है। ' असंख्यात हैं' इस पचनसे संख्यात और अनन्त संख्याकी निवृत्ति हो जाती है।
शंका- असंख्यात किसे कहते हैं, अर्थात् अनन्तसे असंख्यातमें क्या भेद है ?
समाधान- एक एक संख्याके घटाते जाने पर जो राशि समाप्त हो जाती है वह असंख्यात है और जो राशि समाप्त नहीं होती है वह अनन्त है।
शंका - यदि ऐसा है तो व्ययसहित होनेसे नाशको प्राप्त होनेवाला अर्धपुद्गल परिवर्तन काल भी असंख्यातरूप हो जायगा ?
समाधान-हो जाओ। शंका-तो फिर उस अर्धपुद्गल परिवर्तनरूप कालको अनन्त संशा कैसे दी गई है?
समाधान-नहीं, क्योंकि, अर्धपुद्गल परिवर्तनरूप कालको जो अनन्त संज्ञा दी गई है वह उपचारनिमित्तक है। आगे उसीका स्पष्टीकरण करते हैं- अनन्तरूप केवलज्ञानका विषय होनेसे अर्धपुद्गल परिवर्तनकाल भी अनन्त है, ऐसा कहा जाता है।
- शंका-केवलज्ञानके विषयत्वके प्रति कोई विशेषता न होनेसे सभी संख्याओंको अनन्तत्व प्राप्त हो जायगा?
समाधान-नहीं, क्योंकि, जो संख्याएं अवधिज्ञानका विषय हो सकती है उनसे अतिरिक्त ऊपरकी संख्याएं केवलज्ञानको छोड़कर दूसरे और किसी भी ज्ञानका विषय नहीं हो सकती हैं, अतएव ऐसी संख्याओं में अनन्तत्वके उपचारकी प्रवृत्ति हो जाती है। अथवा, जो संख्या पांचों इन्द्रियोंका विषय है वह संख्यात है। उसके ऊपर जो संख्या अवधिशामका विषय
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