Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, ६८.] दव्वपमाणाणुगमे देवगदिपमाणपरूवणं
[२७९ साधियाओ । तं कधं जाणिज्जदे ? अण्णहा वग्गट्टाणे हेहिम-उवरिमवियप्पाणुववत्तीदो । खुद्दाबंधम्हि वुत्तविक्खंभसईओ संपुण्णाओ किण्ण होति ति चे ण, तहाविधगुरुवदेसाभावा । अहवा एत्थ वुत्तविक्खंभसूईओ देसूणाओ खुद्दाबंधम्हि वुत्तविक्खंभईओ संपुण्णाओ। कुदो १ अट्ठरूवे वग्गिज्जमाणे सोहम्मीसाणविक्खभसूचि पावदि, सा सई वग्गिदा णेरइयविक्खंभसूई पावदि, सा सई वग्गिदा भवणवासियविक्खंभसूचिं पावदि त्ति परियम्मे वग्गसमुट्ठिदसामण्णविक्खंभसूचिपादादो खुद्दाबंधे वि घणधारुप्पण्णविक्खंभसूईणं पादोवलंभादो वा । जीवट्ठाणमिच्छाइट्ठिविक्खंभसूचिपादो वि खुद्दाबंधसामण्णविक्खंभसूचिपादेण समाणो उवलंभदे चे ण, दव्वट्ठियणयदो समाणत्वलंभा । पज्जवट्टियणए पुण अवलंबिज्जमाणे णियमेण तत्थ अस्थि विसेसो। खुद्दाबंधुवसंहारजीवट्ठाणस्स मिच्छाइट्टिविक्खंभसूईए सामग्णविक्खंभसूचिसमाणत्तविरोहा । एवं खुद्दा. बंधम्हि वृत्तसव्वअवहारकाला जीवट्ठाणे सादिरेया वत्तव्या । एदं वक्खाणमेत्थ पधाणमिदि गेण्हिदव्यं ण पुचिल्लं ।
शंका- यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान-यदि ऐसा न माना जाय तो वर्गस्थानमें अधस्तन और उपरिम विकल्प नहीं बन सकता है।
शंका- खुद्दाबंधमें कही गई विष्कभसूचियां संपूर्ण क्यों नहीं होती हैं ? समाधान- नहीं, क्योंकि, इसप्रकारका गुरुका उपदेश नहीं पाया जाता है।
अथवा, यहां जीवट्ठाणमें कही गई विष्कंभसूचियां कुछ कम हैं और खुदाबंधमें कही गई विष्कभसूचियां संपूर्ण हैं, क्योंकि, अष्टरूपके उत्तरोत्तर वर्ग करने पर सौधर्म और ऐशान देवोंकी विष्कंभसूचीका प्रमाण प्राप्त होता है। उसका (सौधर्मद्विकसंबन्धी विष्कंभ सूचीका) उसीसे वर्ग करने पर नारक विष्कंभसूची प्राप्त होती है। उसका (नारक विष्भसूचीका) उसीसे वर्ग करने पर भवनवासी देवोंकी विष्कंभसूची प्राप्त होती है, इसप्रकार परिकर्ममें वर्गस्थान प्रकरणमें कही गई सामान्य विष्कंभसूचियोंके अभिप्रायसे अथवा खुद्दाबंधमें भी धनधारामें उत्पन्न हुई विष्कंभसूचियोंके अभिप्रायके पाये जानेसे यह जाना जाता है कि खुद्दाबंधमें कही गई विष्कभसूचियां संपूर्ण हैं।
शंका-जीवट्ठाणमें कहे गये मिथ्यादृष्टियोंकी विष्कंभसूचियोंके अभिप्रायसे खुहाबंधमें कहा गया सामान्य विष्कंभसूचियोंका अभिप्राय समान पाया जाता है ?
समाधान - नहीं, क्योंकि, इन दोनों कथनोंमें द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा समानता पाई जाती है। पर्यायार्थिक नयका अवलम्बन करने पर तो नियमसे उन दोनों कथनों में विशेषता है ही, क्योंकि, खुद्दाबंधके उपसंहाररूपसे जीवट्ठाणमें कही गई मिथ्यादृष्टि विष्कंभसूचियोंसे सामान्य विष्कंभसूचियोंके समान मानने में विरोध आता है। इसीप्रकार खुदाबंध कहे गये संपूर्ण अवहारकाल जीवट्ठाणमें कुछ अधिक जान लेना चाहिये। यह व्याख्यान यहां पर प्रधान है, इसलिये इसका ग्रहण करना चाहिये, पहलेके व्याख्यानका नहीं।
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