Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, ७२. ]
दव्वपमाणानुगमे देवगदिपमाणपरूवणं
[ २८३
कुदो ? तत्थ वोग्गाहिदादिमिच्छत्तेण सह उप्पण्णदेवेसु जिणसासणपडिकूलेसु बहूणं सम्मत्तं पडिवज्जमाणजीवाणमसंभवादो । तम्हि आवलियाए असंखेज्जदिभाएण गुणिदे सम्मामिच्छाइडिअवहारकालो होदि । तम्हि संखेज्जरूवेहि गुणिदे सासणसम्माइट्टिीअवहार कालो होदि । एत्थ कारणं पुत्रं व वत्तव्त्रं । एवं वाणवेंतर- भवणवासिय देवेसु यं । कुदो ! मिच्छत्तोच्छा इददिट्ठीसु भूओसम्मर्द्दसणुप्पत्तिसंभवाभावादो। भवणवासियसासणसम्माइट्ठिअवहारकाले आवलियाए असंखेज्जदिभाएण गुणिदे आणद- पाणदअसंजद सम्माविहार कालो होदि । कुदो ? सुहकम्माणं दीहाऊणं बहूणमसंभवा । तहि संखेज्जहि गुणदे आरणच्चदअसंजदसम्माइट्ठिअवहारकालो होदि । कारणं उवरिमउवरिमकप्पे उपज्जमाण सुहकम्माहियदीहाउवजीवेहिंतो हेडिमहेट्टिमकप्पेसु थोत्रपुण्णेण हरभवट्ठिदी उपज्जमाणजीवाणं बहुत्तोवलंभादो । होता वि असंखेज्जगुणा चेय | कारणं सबीजीभूदमणुसपज्जत्तरासिम्हि संखेज्जत्तुवलंभादो । एवं यन्त्रं जाव उवरिमउवरिमगेवज्जअ संजदसम्माइदिअवहारकालो त्ति । तम्हि संखेज्जरूवेहि गुणिदे आणद
वहां पर व्युद्ग्राहित आदि मिध्यात्वके साथ उत्पन्न हुए और जिन शासनके प्रतिकूल देवोंमें सम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाले बहुत जीवों का अभाव है । उन असंयतसम्यग्दृष्टि ज्योतिषी देवोंके अवहारकालको आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर सम्यग्मिथ्यादृष्टि ज्योतिषियोंका अवहारकाल होता है । इसे संख्यातसे गुणित करने पर सासादनसम्यग्दृष्टि ज्योतिषियों का अवहारकाल होता है । यहां पर उत्तरोत्तर संख्याहानि या अवहारकालकी वृद्धिके कारणका कथन पहले के समान कर लेना चाहिये । इसीप्रकार वाणव्यन्तर और भवनवासी देवोंमें क्रमसे अवहारकाल ले जाना चाहिये, क्योंकि, जिनकी दृष्टि मिथ्यात्वसे आच्छादित है उनमें बहुत सम्यग्दृष्टियों की उत्पत्ति संभव नहीं है । भवनवासी सासादन सम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालको आवली असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर आनत और प्राणतकल्पके असंयतसम्यग्दृष्टियों का अवहारकाल होता है, क्योंकि, शुभ कर्मवाले दीर्घायु जीव बहुत नहीं होते हैं । इस असंयतसम्यग्दृष्टि संबन्धी अवहारकालको संख्यातसे गुणित करने पर आरण और अच्युत कल्पवासी असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है, क्योंकि, उपरिम उपरिम कल्पों में उत्पन्न होनेवाले शुभ कर्मोंकी अधिकतासे दीर्घायुवाले जीवोंसे नीचे नीचेके कल्पोंमें स्तोक पुण्य से स्तोक भवस्थितिमें उत्पन्न होनेवाले जीव अधिक पाये जाते हैं। नीचे नीचे अधिक जीव होते हुए भी वे असंख्यातगुणे ही होते हैं, क्योंकि, बारहवें कल्पसे लेकर ऊपरके कल्पों में जीव मनुष्य राशिसे आकर ही उत्पन्न होते हैं । इसलिये ऊपर के कल्पोंमें उत्पन्न होनेवाले जीवोंके लिये मनुष्यराशि बीजीभूत है और मनुष्य राशि संख्यात ही होती है, अतः ऊपर ऊपर के कल्पोंसे नीचेके कल्पों में जीव असंख्यातगुणे हैं । यही क्रम उपरिम उपरिम ग्रैवेयक के असंयतसम्यग्दृष्टि अघहारकाल तक ले जाना चाहिये । उपरिम उपरिम ग्रैवेयकके असंयतसम्यग्दृष्टि भवद्दारकालको संख्यातसे गुणित करने पर आनत और प्राणतके मिथ्यादृष्टियों का
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