Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२६. छक्खंडागमे जीवहाणं
[ १, २, ५२. भागाभागं वत्तइस्सामो। मणुसरासिमसंखेजखंडे कए बहुखंडा मणुस-अपजत्ता होति । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा मणुसिणीमिच्छाइट्ठी होति । सेसं संखेज्जखंडे कए तत्थ बहुखंडा मणुसपज्जत्तमिच्छाइट्ठी होति । (सेसं संखेज्जखंडे कए तत्थ बहुखंडा असंजदसम्माइद्विणो होति।) सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा सम्मामिच्छाइटिणो होति । सेसं संखेजखंडे कए बहुखंडा सासणसम्माइट्टिणो होति । सेसं संखेज्जखंडे कए तत्थ बहुखंडा संजदासजदा होति । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा पमत्तसंजदा होति । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा अपमत्तसंजदा होंति । उवरि ओघ । ।
अप्पाबहुगं तिविहं, सत्थाणं परस्थाणं सवपरत्थाणं चेदि । तत्थ सत्थाणं वत्तइस्सामो । सव्वत्थोवो मणुसमिच्छाइडिअवहारकालो । तस्सेव दव्वमसंखेज्जगुणं । के गुणगारो ? सगदव्वस्स असंखेजदिभागो । को पडिभागो ? सगअवहारकालो । अहवा सेढीए असंखेजदिभागो असंखेज्जाणि सेढिपढमवग्गमूलाणि । को पडिभागो? सगअवहार
राशिमेंसे एक कम कर देने पर सामान्य मनुष्यराशिका प्रमाण आता है और इसमेंसे पर्याप्त मनुष्यराशिका प्रमाण घटा देने पर लब्ध्यपर्याप्त मनुष्यराशिका प्रमाण आता है।
अब भागाभागको बतलाते है- मनुध्यराशिके असंख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभागप्रमाण अपर्याप्त मनुष्य हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर उनमेंसे बहुभागप्रमाण मनुष्यनी मिथ्यादृष्टि जीव हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर उनमेंसे बहुभागप्रमाण मनुष्य पर्याप्त मिथ्यादृष्टि जीव हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभागप्रमाण असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्य हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर उनमेंसे बहुभागप्रमाण सम्यग्मिथ्यादृष्टि मनुष्य है। शेष एक भागके संख्यात भाग
र उनसे बहुभागप्रमाण सालादनसम्यग्दृष्टि मनुष्य हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर उनसे बहुभागप्रमाण संयतासंयत मनुष्य हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर उनमेंसे बहुभागप्रमाण प्रमत्तसंयत मनुष्य हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर उनमेंसे बहुभागप्रमाण अप्रमत्तसंयत मनुष्य हैं। इसके ऊपर सामान्य प्ररूपणाके समान भागाभाग जानना चाहिये।
अल्पबहुत्व तीन प्रकारका है, स्वस्थान अल्पबहुत्व, परस्थान अल्पबहुत्व और सर्व परस्थान अल्पबहुत्व । उनमेंसे स्वस्थान अल्पबहुत्वको बतलाते हैं- मनुष्य मिथ्यादृष्टि अवहारकाल सबसे स्तोक है । उन्हीं मनुष्य मिथ्यादृष्टियोंका द्रव्यप्रमाण अवहारकालसे असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? अपने द्रब्यका असंख्यातवां भाग गुणकार है। प्रतिभाग क्या है ? अपना अवहारकाल प्रतिभाग है। अथवा, जगश्रेणीका असख्यातवां भाग गुणकार है जो जगश्रेणीका असंख्यातवां भाग जगश्रेणीके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है। प्रतिभाग क्या है ? अपने अवहारकालका वर्ग प्रतिभाग है। अथवा, प्रतरांगुलका असंख्यातवां भाग
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