Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, ४३.] दव्वपमाणाणुगमे मणुसगदिपमाणपरूवर्ण
[२५१ रासी होदि त्ति सिद्धं । एदस्स खंडिदादओ विदियपुढविमिच्छाइट्ठीणं जहा वुत्ता सही वत्तव्या । णवरि एत्थ अंगुलवग्गमूलेण तदियवग्गमूलं गुणिले अवहारकालो होदि । सव्वत्थ रूवाहियतेरसगुणटाणपमाणमवणेयव्यं ।
सासणसम्माइटिप्पहुडि जाव संजदासजदा ति दव्वपमाणेण केवडिया, संखेज्जा ॥ ४३ ॥
__ एत्थ पहुडिसहो आदिसहत्थे वदे । तेण सासणसम्माइद्विमादि करिय जाव संजदासजदा एदेसु गुणट्ठाणेसु मणुसरासी संखेज्जा चेव होदि त्ति जं वुत्तं होदि । संखेज्जा इदि सामण्णेण वुत्ते वावण्णकोडिमेत्ता सासणसम्माइट्ठिणो हवंति । तत्तो दुगुणा सम्मामिच्छाइटिणा हवंति । सत्तसयकोडिमेत्ता असंजदसम्माइट्ठिणो हवंति । (संजदा
जीवराशिका प्रमाण होता है, यह सिद्ध हो गया।
विशेषार्थ-सूच्यंगुलके प्रथम और तृतीय वर्गमूलका परस्पर गुणा करके जो लब्ध आवे उसका जगश्रेणीमें भाग देने पर एक अधिक सामान्य मनुण्यराशिका प्रमाण आता है। अतएव लब्धमें एक कम कर देने पर सामान्य मनुष्यराशिका प्रमाण होता है। परंत प्रक्रतमें मिथ्यादृष्टि मनुष्यराशि लाना है, अतएव उक्त सामान्य मनुष्यराशिमें से सासादन आदि तेरह गुणस्थानवी मनुष्यराशिके प्रमाणको और कम कर देना चाहिये, तब मिथ्याष्टि मनुष्यराशिका प्रमाण होगा।
जिसप्रकार दृसरी पृथिवीके मिश्यादृष्टियोंके खंडित आदिका कथन कर आये हैं उसीप्रकार इस मनुष्य मिथ्यादृष्टि जीवराशिके खंडित आदिकका कथन करना चाहिये । इतना विशेष है, कि यहां पर सून्यंगुलके प्रथम वर्गमूलसे तृतीय वर्गमूलके गुणित करने पर अवहारकालका प्रमाण होता है । तथा मनुष्य मिथ्यादृष्टि राशिका प्रमाण लानेके लिये सर्वत्र एक अधिक तेरह गुणस्थानवी जीवराशिका प्रमाण घटा देना चाहिये।
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर संयतासंयत गुणस्थानतक प्रत्येक गुणस्थानमें मनुष्य द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? संख्यात हैं ।। ४३ ॥
___ यहां पर प्रभृति शब्द आदि शब्दके अर्थमें आया है, इसलिये सासादनसम्यग्दृष्टिसे प्रारंभ करके संयतासंयत गुणस्थानतक इन चार गुणस्थानों में प्रत्येक गुणस्थानवी मनुष्यराशि संख्यात ही होती है, यह इस सूत्रका अभिप्राय है। सासादनसम्यग्दृष्टि आदि चार गुणस्थानोंमेंसे प्रत्येक गुणस्थानवर्ती मनुष्यराशि संख्यात है, ऐसा सामान्यरूपसे कथन करने पर सासादनलम्यग्दृष्टि मनुष्य बावन करोड़ है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि मनुष्य सासादनसम्यग्दृष्टि मनुष्यों के प्रमाणले दूने हैं। असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्य सातसौ करोड़ प्रमाण हैं। संयतासंयतोंका प्रमाण तेरह
१ सासादनसम्यग्दृष्ट्यादयः संयतासंयतान्ताः संख्येयाः । स. सि. १, ८. २ प्रतिषु अतः परं ' तत्तो दुगुणा सम्माइट्टिणी हवंति' इत्यधिकः पाठः।
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