Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२९८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, २, ४२. विदियवग्गमूले भागे हिदे घणंगुलपढमवग्गमूलमागच्छदि । पुणो सूचिअंगुलपढमबग्गमूलेण (घणंगुलपढमवग्गमूले ) भागे हिदे सूचिअंगुलमागच्छदि । पुणो अण्णोण्णगुणिदविदिय-तदियवग्गमूलेण (सूचिअंगुले ) आगे हिदे अवहारकालो आगच्छदि ।
__गहिदादिभेएण उवरिमवियप्पो तिविहो । तत्थ गहिदं वत्तइस्सामो । तेणेव भागहारेण सूचिअंगुलं गुणिय पदरंगुले भागे हिदे मणुसमिच्छाइडिअवहारकालो आगच्छदि । तं जहा- सूचिअंगुलेण पदरंगुले भागे हिदे सूचिअंगुलमागच्छदि । पुणो पुवभागहारेण सूचिअंगुले भागे हिदे अवहारकालो आगच्छदि । अट्टरूवे वत्तइस्सामो । सूचिअंगुलविदिय-तदियवग्गमूलं अण्णोणं गुणिय तेण पदरंगुलं गुणिय घणंगुले भागे हिदे मणुस्सअवहारकालो आगच्छदि। एसो मज्झिमवियप्पे किण्ण पददि त्ति वुत्ते ण, सूचिअंगुलादो अहियरासिमवलंबिय उप्पाइज्जमाणे उवरिमवियप्पत्तं पडि विरोहाभावादो । घणाघणे वत्तइस्सामो । विदिय-तदियवग्गमूलेहि पदरंगुलं गुणिय तेण घणंगुलउवरिमवग्गं गुणिय तेण घणाघणंगुले भागे हिदे मणुसमिच्छाइटिअवहारकालो
घनांगुलका प्रथम वर्गमूल आता है । पुनः सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलसे घनांगुलके प्रथम वर्गमूलके भाजित करने पर सूच्यंगुल आता है । पुनः सूच्यंगुलके दूसरे और तीसरे वर्गमूलका परस्पर गुणा करनेसे जो राशि उत्पन्न हो उससे सूच्यंगुलके भाजित करने पर मनुष्य मिथ्यादृष्टि अवहारकाल आता है।
गृहीत आदिके भेदसे उपरिम विकल्प तीन प्रकारका है। उनमेंसे गृहीत उपरिम विकल्पको बतलाते हैं-उसी भागहारसे अर्थात् सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूल गुणित तृतीय वर्गमूलसे सूच्यंगुलको गुणित करके जो लब्ध आये उससे प्रतरांगुलके भाजित करने पर मनुष्य मिथ्यादृष्टि अवहारकाल आता है । जैसे, सूच्यंगुलसे प्रतरांगुलके भाजित करने पर सूच्यंगुल आता है । पुनः पूर्वोक्त भागहारसे अर्थात् सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूल गुणित तृतीय वर्गमूलसे सूच्यंगुलके भाजित करने पर मनुष्य मिथ्यादृष्टि अवहारकाल आता है।
अब अष्टरूपमें गृहीत उपरिम विकल्पको बतलाते हैं- सूच्यंगुलके दूसरे और तीसरे वर्गमूलको परस्पर गुणित करके जो लब्ध आवे उससे प्रतरांगुलको गुणित करके आई हुई लब्ध राशिसे घनांगुलके भाजित करने पर मनुष्य मिथ्यादृष्टि अवहारकाल आता है।
शंका-प्रस्तुत विकल्प मध्यम विकल्पमें समाविष्ट क्यों नहीं होता है ? - समाधान-नहीं, क्योंकि, सूच्यंगुलसे बड़ी राशिका अवलम्बन करके मनुष्य मिथ्यादृष्टि भवहारकालके उत्पन्न करने पर इसे उपरिम विकल्पके होने में कोई विरोध नहीं आता है।
____ अब घनाघनमें गृहीत उपरिम विकल्पको बतलाते हैं- परस्पर गुणित सूच्यंगुलके दूसरे और तीसरे वर्गमूलसे प्रतरांगुलको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे घनांगुलके उपरिम वर्गको गुणित करके लब्ध राशिका घनाघनांगुलमें भाग देने पर मनुष्य मिथ्यादृष्टि अव
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