Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, ५.]
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दव्वपमाणाणुगमे मिच्छाइद्विपमाणपरूवणं पक्खेवरासिगुणिदो पक्खेवेणाहिएण लद्धेण । भजिओ हु भागहारो अवणेज्जो होइ अवहोरे ॥ ३० ॥ जे अहिया अवहारे रूवा तेहिं गुणित्तु पुव्वफलं । अहियवहारेण हिए लद्धं पुव्वफलं ऊणं ॥ ११ ॥ जे ऊणा अवहारे रूवा तेहिं गुणित्तु पुवफलं । ऊणवहारेण हिए लद्धं पुव्वफलं अहियं ॥ ३२ ॥
भागहारको प्रक्षेपराशिसे गुणा कर देने पर और प्रक्षेपसे अधिक लब्धराशिका भाग देने पर जो लब्ध आता है वह भागहारमें अपनेय राशि होती है ॥ ३०॥ उदाहरण ( बीजगणितसे )--- क, इष्ट ख, प्रक्षिप्त राशि (ख-क),
अपनेय भागहार व - ब (ख) - खब ( अंकगणितसे )--३६-९, इष्ट १२; प्रक्षेप ३, अपनेय भागहार ४-१२-४-१३
भागाहारमें जितनी अधिक संख्या होती है उससे पूर्व फलको गुणित करके तथा आधिक अवहारसे हृत अर्थात् भाजित करने पर जो आवे उसे पूर्वफलमेंसे घटा देने पर नया लब्ध आता है ॥३१॥
उदाहरण ( बीजगणितसे )--- = स; नया भागहार- +ड
अ बस नया लब्ध%2111
ब+ड ब +ड
ब+ड
अर्थात् इसे पुराने भजनफल स में से घटा देने
पर नया भजनफल आ जाता है। ( अंकगणितसे )--३६ = ४; १२ नया भागहार; भागाहारमें अधिक ३;
= १, ४ - १ = ३ नया भजनफल. भागहारमें जितनी न्यून संख्या होती है उससे पूर्व फलको गुणित करके तथा न्यून भागहारसे हृत करने पर जो आवे उसे पूर्वफलमें जोड़ देने पर नया लब्ध आता है ॥३२॥
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१ ल. क्ष. ४७०.
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