Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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७६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, २, ६. च्छदि ति कट्ट गुणेऊण भागग्गहणं कदं । अहरूवे हेडिमवियप्पो भवदु णाम, वेरूवे हेडिमवियप्पो ण घडदे। केण कारणेण ? अवहारकालेग पलिदोवमादो हट्टिमवग्गहाणाणि भागे हिदे सासणसम्माइट्ठिरासी ण उप्पज्जदि त्ति । ण एस दोसो, पलिदोवमादो हेहिमवग्गट्ठाणाणि अवहारकालणावट्टिय तप्पाओग्गवग्गट्ठाणाणि गुणिदे केवलमोवट्टिदे च जत्थ रासी आगच्छदि सो हेट्ठिमवियप्पो त्ति अब्भुवगमादो । मिच्छा-- इहिरासिपरूवणाए वि एदम्हि णए अवलंबिज्जमाणे वेरूवे हेट्ठिमवियप्पो अत्थि त्ति वत्तव्बो ? एसा परूवणा जेण अवहारकालपहाणा तेण पलिदोपमादो हेहिमवग्गहाणाणि अवहारेणोवहिय जदि सासणसम्माइहिरासी उप्पाइदं सकिज्जदे तो हेहिमवियप्पस्स वि संभवो होज्ज । ण च एवं वेरूवधाराए संभवइ । एदं णयमास्सिऊण मिच्छाइट्ठिरासिपरूवणाए हेहिमवियप्पो णत्थि त्ति भणिदं । एसो णओ एत्थ पहाणो । एवमट्टरूवपरूवणा गदा।
शंका-घनधारामें अधस्तन विकल्प रहा आवे, परंतु द्विरूप वर्गधारामें अधस्तन विकल्प घटित नहीं होता है, क्योंकि, अवहारकालका पल्योपमसे नीचेके वर्गस्थानों में भाग दिया जाता है तो सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशि उत्पन्न नहीं होती है ?
समाधान--यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, पल्योपमसे नीचेके वर्गस्थानोंको अवहारकालसे अपवर्तित करके जो लब्ध आवे उससे उसके योग्य वर्गस्थानोंके गुणित करने पर अथवा, केवल अपवर्तित करने पर, अर्थात् पल्योपमको अवहारकालसे भाजित करने पर, जहां पर सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशि आती है वह अधरतन विकल्प यहां पर स्वीकार किया गया है। उदाहरण-पल्योपमका अधस्तन वर्गस्थान = २५६, २५६ : ३२ = ८, २५६४८
=२०४८ सा. अथवा. ६५५३६ : ३२ = २०४८ सा. शंका-मिथ्यादृष्टि जीवराशिकी प्ररूपणामें भी इस नयके अवलम्बन करने पर द्विरूपवर्गधारामें अधस्तन विकल्प बन आता है, इसलिये वहां पर उसका कथन करना चाहिये था?
समाधान- क्योंकि यह प्ररूपणा अवहारकालप्रधान है, इसलिये पल्योपमसे नीचेके धर्गस्थानोंको अवहारकालसे भाजित करके यदि सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशि उत्पन्न करना शक्य है तो यहां पर अधस्तन विकल्प भी संभव है। परंतु मिथ्यादृष्टि जीवराशिका प्रमाण निकालते समय द्विरूपवर्गधारामें इसप्रकार अधस्तन विकल्प संभव नहीं है । इसी नयका आश्रय करके मिथ्यादृष्टि जीवराशिकी प्ररूपणामें अधस्तन विकल्प नहीं होता, ऐसा कहा है । यह नय यहां पर प्रधान है । इसप्रकार घनधारा समाप्त हुई।
विशेषार्थ-सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण निकालनेके लिये असंख्यात आवली.
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