Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, १६.] दव्वपमाणाणुगमे णिरयगदिपमाणपरूवणं
[ १२९ सलागाओ पदरावलियादो उवरि गंतूणुप्पण्णाओ, तम्हा तिण्णिवारवग्गिदसंवग्गिदरासीदो णेरइयमिच्छाइहिरासी असंखेज्जगुणो । को छदवपक्खित्तरासी ?
धम्माधम्मा लोयायासा पत्तेयसरीर-एगजीवपदेसा ।
बादरपदिहिदा वि य छप्पेदेऽसंखपक्खेवा' ॥ ६२॥ एदाणि छ दव्वाणि पुव्वुत्तरासिम्हि पक्खित्ते छदव्बपक्खित्तरासी होदि । एवं विहाणेण भणिदअजहण्णमणुक्कस्सासंखेज्जासंखेज्जयस्स जत्तियाणि रूवाणि तत्तियमेत्तो णेरइयमिच्छाइट्ठिरासी होदि । एवं दवपमाणं समत्तं ।
असंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि-उस्तप्पिणीहि अवहिरंति कालेण ॥१६॥
किमर्से मिच्छाइट्टिरासी कालेण परूविजदे ? ण, असंखेज्जरासी सव्वा णिहदि
अर्थात् जघन्य परीतासंख्यातके ऊपर और उसके उपरिम वर्गके नीचे उत्पन्न हुई हैं और पल्योपमकी वर्गशलाकाओंकी वर्गशलाकाए प्रतरावलीके ऊपर जाकर उत्पन्न हुई हैं। इससे प्रतीत होता है कि तीनवार वर्गितसंवर्गित असंख्यातासंख्यात राशिसे नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशि असंख्यातगुणी है।
शंका-छह द्रव्य प्राक्षिप्त राशि कौनसी है ?
समाधान-धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, लोकाकाश, अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति, एक जीवके प्रदेश और बादर प्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति ये छह असंख्यात राशियां तीनवार वर्गितसंवर्गित राशिमें मिला देना चाहिये ॥ ६२॥
इन छह राशियोंको पूर्वोक्त राशिमें प्रक्षिप्त करने पर छह द्रव्य प्रक्षिप्त राशि होती है।
इस विधिसे कहे गये मध्यम असंख्यातासंख्यातका जितना प्रमाण हो उतनी नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशि है।
__इसप्रकार द्रव्यप्रमाणका वर्णन समाप्त हुआ। कालकी अपेक्षा नारक मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातासंख्यात अपसर्पिणियों और उत्सर्पिणियोंके द्वारा अपहृत हो जाते हैं ॥ १६ ॥
शंका-नारक मिथ्यादृष्टि जीवोंका कालकी अपेक्षा किसलिये प्ररूपण किया ? समाधान-नहीं, क्योंकि, संपूर्ण असंख्यात जीवराशि समाप्त हो जाती है, इस
१ धम्माधम्मा लोगागासा एगजीवपदेसा चत्तारि वि लोगागासमेत्ता पत्तेगसरीरवादरपदिट्ठिय एदे। ति. प. ५२. धम्माधम्मिगिजीवगलोगागासप्पदेसपत्तेया। तत्तो असंखगुणिदा पदिद्विदा छप्पि रासीओ ॥ त्रि. सा. ४२.
२ असंखिज्जाहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ। अनु. सू. १४२. पृ. १८४,
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