Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१९४ ]
[ १, २, १९.
मिच्छाइट्ठिदव्वं सत्तमपुढविमिच्छाइदिव्यपमाणेण कस्सामो । तं जहा - सेडिविदियवग्गमूलभजिदजगसेढीए जदि एकं सत्तमपुंढविमिच्छाइदिव्यपमाणं लब्भदि तो सामण्णरइयमिच्छादिव्यहि केत्तियं लभामो त्ति फलेग इच्छं गुणिय पमाणेण भागे हिदे विक्खंभसूचिगुणिदसेदिविदियवग्गमूलमेत्ताणि सत्तमपुढविमिच्छाइट्टिदव्त्रखंडाणि आग - च्छंति । एवं सामण्णणेरइय अवहारकालरूवाणमुवरि ट्ठिदसामण्णणेरइयशसी पत्तेयं पत्र्त्तेय सत्तमपुढविमिच्छाइदिव्त्रपमाणेण कायव्यो । पुणो तत्थ एगरूवधरिदखंडेसु सत्तमपुढविमिच्छाइदिच्च पमाणं' एगखंडपमाणं होदि । छट्ठपुढविमिच्छाइट्ठिदव्वं सेढितदियवग्गमूलमेत्तखंडाणि घेत्तूण भवदि । पुणो पंचम पुढविमिच्छाइदिव्यं सेढितदियवग्गमूलादिचउवग्गमूलाणि गुणिदे तत्थ जत्तियाणि रुवाणि तत्तियमेत्तखंडाणि घेत्तूण हवदि ।
छक्खंडागमे जीवद्वाणं
उदाहरण १३१०७२ १३१०७२ सा. ना. मि. रा.
१
१ ३२७६८ वार.
अब एक विरलन के प्रति प्राप्त सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि द्रव्यको सातवीं पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यके प्रमाणरूपसे करके बतलाते हैं । जैसे— जगश्रेणी के द्वितीय वर्गमूलका जगश्रेणीमें भाग देने पर यदि एकवार सातवीं पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यका प्रमाण प्राप्त होता है तो सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि द्रव्यमें कितना प्राप्त होगा, इसप्रकार त्रैराशिक करके फलराशि से इच्छाराशिको गुणित करके जो लब्ध आवे उसमें प्रमाणराशिका भाग देने पर जगश्रेणी के द्वितीय वर्गमूलको विष्कंभसूचीसे गुणित करके जो लब्ध आवे उतने सातवीं पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यके खंड होते हैं ।
उदाहरण - प्रमाणराशि ६५५३६, फलराशि १; इच्छा राशि १३१०७२,
१२८ १३१०७२x१ = १३१०७२, १३१०७२÷
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= २५६ = १२८ x २ खंड.
इसीप्रकार सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि अवहारकालकी संख्याके ऊपर स्थित प्रत्येक सामान्य नारक मिध्यादृष्टि जीवराशिको सातवीं पृथिवीके मिध्यादृष्टि द्रव्यके प्रमाणरूप से कर लेना चाहिये । परंतु वहां पर एक विरलन के प्रति प्राप्त खंडोंमें सातवीं पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यका प्रमाण एक खंड प्रमाण होता है। छठी पृथिवीका मिथ्यादृष्टि द्रव्य जगश्रेणी के तृतीय वर्गमूलमात्र सातवीं पृथिवीके द्रव्य-खंडोंको लेकर होता है । पुनः पांचवीं पृथिवीका मिध्यादृष्टि द्रव्य जगश्रेणी के तीसरे वर्गमूल से लेकर चार वर्गमूलों के परस्पर गुणा करने पर वहां जितना प्रमाण आवे तन्मात्र सातवीं पृथिवीके द्रव्य-खंडों को लेकर होता है ।
१ प्रतिषु पमाणाणं ' इति पाठः ।
६५५३६ १२८
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