Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, ३०.] दव्वपमाणाणुगमे तिरिक्खगदिपमाणपरूवर्ण [२२७ वुदासो कदो हवदि । दयपमाणेणेत्ति णिदेसेण खेत्त-कालवुदासो कदो हवदि । केवडिया इदि पुच्छासुत्तणिदेसेण छदुमत्थाणं कत्तारत्तमवणिदं हवदि । असंखेज्जा इदि णिद्देसेण संखेज्जाणताणं वुदासो कदो। किमहं दव्वपमाणमेव पढमं परूविजदि ? ण एस दोसो, अदीवथूलत्तादो दव्यपरूवणा पढमं परूविजदे। कधमेदिस्से थूलत्तणं ? असंखेजमेत्तविसेसिदजीवोवलंभणिमित्तादो। खेत्त-कालहितो दव्यं थोवेत्ति वा पुव्वं परूविज्जदे । दव्यथोवत्तणं कधं जाणिजदे ? 'वड्डीद जीव-पोग्गल-कालागासा अणंतगुणा' एदम्हादो गाहासुत्तादो णव्वदे । सेसपरूवणा जहा जेरइयमिच्छाइहिदवपमाणपरूवणसुत्तस्स उत्ता तहा वत्तव्वा । ___असंखेनासंखेनाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि अवहिरंति कालेण ॥ ३०॥
पदके निर्देशसे शेष गुणस्थानोंका निराकरण हो जाता है। 'द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा' इसप्रकारके निर्देशसे क्षेत्र और कालप्रमाणका निराकरण हो जाता है। कितने हैं ' इसप्रकार पृच्छारूप सूत्रके निर्देशसे छद्मस्थकर्तृकत्वका निराकरण हो जाता है। ' असंख्यात हैं' इसप्रकारके निर्देशसे संख्यात और अनन्तका निराकरण हो जाता है।
शंका- पहले द्रव्यप्रमाणका ही प्ररूपण क्यों किया जा रहा है?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, द्रव्यप्ररूपणा अतीव स्थूल है, इसलिये उसका पहले प्ररूपण किया जाता है।
शंका-यह द्रव्यप्ररूपणा स्थूल कैसे है?
समाधान-क्योंकि, यह द्रव्यप्ररूपणा केवल असंख्यात विशेषणसे युक्त जीवोंके ग्रहण करने में निमित्त है, इसलिये स्थूल है।
अथवा, क्षेत्र और कालसे द्रव्य स्तोक है, इसलिये उक्त दोनों प्ररूपणाओंके पहले द्रव्यप्ररूपणाका कथन किया जाता है।।
शंका-क्षेत्र और कालसे द्रव्य स्तोक है, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान-'वृद्धिकी अपेक्षा जीव, पुद्गल, काल और आकाश उत्तरोत्तर अनन्तगुणे हैं' इस गाथासूत्रसे जाना जाता है कि काल और क्षेत्रसे द्रव्य स्तोक है।
शेष प्ररूपणा जिसप्रकार नारक मिथ्यादृष्टि द्रव्यके प्रमाणके प्ररूपण करनेवाले सूत्रकी कह आये हैं उसप्रकार कहना चाहिये।
कालकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय तिर्यच पर्याप्त मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियोंके द्वारा अपहृत होते हैं ॥ ३० ॥
प्रतिषु · अक्षीद ' इति पाठः ।
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