Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२५२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, २, ३९. ओघपरत्थाणभंगो। तदो मिच्छाइट्ठी अणंतगुणा । को गुणगारो ? तिरिक्खमिच्छाइट्ठिणqसगसंखेञ्जदिभागो । पंचिंदियतिरिक्खेसु असंजदस्स अवहारकालादो जाव पलिदोवमेत्ति ओघपरत्थाणभंगो। तदो मिच्छाइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो। को गुणगारो ? पदरंगुलस्त असंखेजदिभागो असंखेज्जाणि सूचिअंगुलाणि सूचिअंगुलस्स असंखेजदिभागमेत्ताणि । को पडिभागो ? असंखेज्जाणि पलिदोवमाणि । उवरि सत्थाणभंगो। एवं पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्ताणं पि वत्तव्यं । णवरि जम्हि असंखेज्जाणि पलिदोवमाणि त्ति वुत्तं तम्हि संखेज्जाणि पलिदोवमाणि त्ति वत्तव्वं । एवं जोणिणीणं पि । णवरि जम्हि संखेज्जाणि पलिदोवमाणि त्ति वुत्तं तम्हि पलिदोवमस्स संखेजदिभागो । पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तपरत्थाणं सगसत्थाणतुल्लं ।
____सव्वपरत्थाणे पयदं । सव्वत्थोवो असंजदसम्माइडिअवहारकालो । एवं जाव पलिदोवमोत्ति णेयव्वं । तदो पंचिंदियतिरिक्खमिच्छाइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । को गुणगारो। पुव्वभणिदो । पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तअवहारकालो विसेसाहिओ केत्तियमेत्तेण ? आवलियाए असंखेजदिभाएण खंडिदएयखंडमेत्तेण । पंचिंदियतिरिक्ख
लेकर पल्योपमतक ओघ परस्थान अल्पबहुत्वके कथनके समान कथन जानना चाहिये । पल्योपमसे मिथ्यादृष्टि द्रव्य अनन्तगुणा है। गुणकार क्या है ? तिर्यंच मिथ्यादृष्टि नपुंसकवेदियोंका संख्यातवां भाग गुणकार है। पंचेन्द्रिय तिर्यचोंमें असंयतोंके अवहारकालसे लेकर पल्योपमतक ओघ परस्थानके कथनके समान कथन जानना चाहिये । पल्योपमसे मिथ्यादृष्टि अवहारकाल असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? प्रतरांगुलका असंख्यातवां भाग गुणकार है जो सूच्यंगुलके असंख्यातवें भागमात्र असंख्यात सूच्यंगुलप्रमाण है। प्रतिभाग क्या है? असंख्यात पल्योपमोंका प्रमाण प्रतिभाग है। इसके ऊपर स्वस्थान अल्पबहुत्वके समान कथन जानना चाहिये। इसीप्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्तोंके अल्पबहुत्वका भी कथन करना चाहिये । इतना विशेष है कि जहां पर असंख्यात पल्योपम हैं ऐसा कहा है वहां पर संख्यात पल्यापम हैं ऐसा कथन करना चाहिये। इसीप्रकार योनिमतियोंके अल्पबहुत्वका भी कथन करना चाहिये। इतना विशेष है कि जहां पर संख्यात पल्योपम हैं ऐसा कहा है वहां पर पल्योपमका संख्यातवां भाग है ऐसा कथन करना चाहिये। पंचेन्द्रिय तिर्यच अपर्याप्तोंका परस्थान अल्पबहुत्व अपने स्वस्थान अल्पबहुत्वके समान है।
अब सर्व परस्थानमें अल्पबहत्वका कथन प्रकृत है- असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल सबसे स्तोक है। इसीप्रकार पल्योपमतक ले जाना चाहिये । पल्योपमसे पंचेन्द्रिय तिर्यंच मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? पूर्व कथित प्रतरांगुलका असंख्यातवां भाग गुणकार है। पंचेन्द्रिय तिर्यंच मिथ्यादृष्टियोंके अवहारकालसे पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तोंका अवहारकाल विशेष अधिक है। कितने मात्र विशेषसे अधिक है? पंचन्द्रिय तिर्यंच मिथ्यादृष्टियोंके अवहारकालको आवलीके असंख्यातवें भागसे खंडित करके
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