Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, २७.] दव्वपमाणाणुगमे तिरिक्खगदिपमाणपख्वणं
[२२३ असंखेज्जदिभागेण गुणिदसूचिअंगुलेण घणंगुलपढमवग्गमूलं गुणेऊण तेण घणाघणंगुलपढमवग्गमूले भागे हिदे पंचिंदियतिरिक्खमिच्छाइट्ठिअवहारकालो होदि । तं जहाघणंगुलपढमवग्गमूलेण घणाघणंगुलपढमवग्गमूले भागे हिंदे घणंगुलमागच्छदि । पुणो सूचिअंगुलेण घणंगुले भागे हिदे पदरंगुलमागच्छदि । पुणो आवलियाए असंखेज्जदिभाएण पदरंगुले भागे हिदे पंचिदियतिरिक्खमिच्छाइडिअवहारकालो होदि । एवं हेडिमवियप्पो गदो। __उवरिमवियप्पो तिविहो, गहिदो गहिदगहिदो गहिदगुणगारो चेदि । तत्थ वेरूवे गहिदं वत्तइस्सामो। आवलियाए असंखेज्जदिभागेण पदरंगुलं भागे हिदे पंचिंदियतिरिक्खमिच्छाइद्विअवहारकालो आगच्छदि। तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स छेदणए कदे पंचिंदियतिरिक्खमिच्छाइडिअवहारकालो होदि । एसो मज्झिम. वियप्पो, एदमवेक्खिय हेठिम-उवरिमववएससंभवादो। एसो उवयारेण उवरिमवियप्पो
अब घनाघनमें अधस्तन विकल्प बतलाते हैं- आवलीके असंख्यातवें भागसे सूच्यंगुलको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे घनांगुलके प्रथम वर्गमूलको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे धनाधनांगुलके प्रथम वर्गमूलके भाजित करने पर पंचेन्द्रिय तिर्यंच मिथ्यादृष्टि अवहारकाल होता है। इसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है- घनांगल के प्रथम वगेमलसे घनाघनांगुलके प्रथम वर्गमूलके भाजित करने पर घनांगुलका प्रमाण आता है। पुनः सूच्यंगुलसे घनांगुलके भाजित करने पर प्रतरांगुलका प्रमाण आता है। पुनः आवलीके असंख्यातवें भागसे प्रतरांगुलके भाजित करने पर पंचेन्द्रिय तिर्यंच मिथ्यादृष्टि अवहारकाल होता है । इसप्रकार अधस्तन विकल्प समाप्त हुआ।
___ उपरिम विकल्प तीन प्रकारका है, गृहीत, गृहीतगृहीत और गृहीतगुणकार । उनमेंसे द्विरूपमें गृहीत उपरिम विकल्पको बतलाते हैं- आवलीके असंख्यातवें भागसे प्रतरांगुलके भाजित करने पर पंचेन्द्रिय तिर्यंच मिथ्यादृष्टि अवहारकाल आता है। उक्त भागहारके जितने अर्धच्छेद हो उतनीवार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी पंचेन्द्रिय तिर्यच मिथ्यादृष्टि अवहारकाल होता है । वास्तव में यह मध्यम विकल्प है और इसीकी अपेक्षा करके ही अधस्तन और उपरिम संशा संभव है, इसलिये उपचारसे यह उपरिम विकल्प कहा जाता है।
विशेषार्थ-विवक्षित भाजकका किसी विवक्षित भाज्यमें भाग देनेसे जो लब्ध आता है वही लब्ध जब उस विवक्षित भाज्य और भाजकसे नीचेकी संख्याओंका आश्रय लेकर निकाला जाता है, तब वह अधस्तन विकल्प कहलाता है; और जब वही लब्ध उस विवक्षित भाज्य और भाजकसे ऊपरकी संख्याओंका आश्रय लेकर निकाला जाता है, तब उसे उपरिम विकल्प कहते हैं। इस नियमके अनुसार प्रकृतमें भाजक आवलीका असंख्यातवां भाग और भाज्य प्रतरांगुल, इन दोनोंसे नीचेकी संख्याओंका आश्रय लेकर जब पंचेन्द्रिय तिर्यंच मिथ्यादृष्टि अवहारकाल
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