Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
१७८] छक्खंडागमे जीवहाणं
[ १, २, १९. अहवा पढमपुढविविक्खंभसूईए सामण्णणेरइयविक्खंभमूइमोवट्टिदे एगरूवमेगरूवस्स असंखेजदिभागो आगच्छदि । तस्स एगरूवासंखेजदिभागस्स को पडिभागो ? किंचूणसढिवारसवग्गमूलगुणिदपढमपुढविविक्खंभसूची पडिभागो। पुणो एदाओ दो रासीओ पुध मज्झे द्वविय तेरासियं कायव्वं । तं जहा- सामण्णणेरइयरासिम्हि जदि एगरूवं एगरूवस्स असंखेजदिभागो च पढमपुढविमिच्छाइडिअवहारकालो लब्भदि तो सामण्णणेरइयअवहारकालमेत्तसामण्णणेरइयमिच्छाइट्ठिरासिम्हि किं लभामो त्ति सरिसमवणिय सामण्णणेरइयमिच्छाइटिअवहारकालेण एगरूवमेगरूवस्स असंखेजदिभागं गुणिदे पढमपुढविमिच्छाइटिअवहारकालो आगच्छदि ।
२५६
१९३
३८६ - २५६ = ३८६, ६५५३६ : ३८६ - ८३८८६०८ प्र. पृ. मि. अव. अथवा, प्रथम पृथिवीकी मिथ्यादृष्टि विष्कंभसूचीसे सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि विष्कंभसूचीके अपवर्तित करने पर एक और एकका असंख्यातवां भाग लब्ध आता है।
उदाहरण . १९३.२५६ ., ६३ .
उदाहरण-२२१२४ १९३
१९
शंका-उस एकके असंख्यातवें भागके लानेके लिये प्रतिभाग क्या है ?
समाधान-जगश्रेणीके कुछ कम बारहवें वर्गमूलसे गुणित प्रथम पृथिवीकी मिथ्यादृष्टि विष्कंभसूची एकके असंख्यातवें भागके लानेके प्रतिभाग है।
उदाहरण-१९३४ १३८ - १९३ प्रतिभाग।
अनन्तर इन दो राशियोंको पृथकरूपसे मध्यमें स्थापित करके त्रैराशिक करना चाहिये । वह इसप्रकार है- सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि राशिमें प्रथम पृथिवीसंबन्धी मिथ्यादृष्टि जीवोंका अवहारकाल यदि एक और एकका असंख्यातवां भाग प्राप्त होता है तो सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि अवहारकालमात्र अर्थात् सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि अवहारकालगुणित सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि राशिमें कितना प्राप्त होगा, इसप्रकार सदृश राशि अंश और हररूप सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशिका अपनयन करके सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि भवहारकालसे एक और एकके असंख्यातवें भागको गुणित करने पर प्रथम पृथिवीके मिथ्यादृष्टि जीवराशिका अवहारकाल आता है।
उदाहरण-यहां १३१०७२ प्रमाण नारक मिथ्यादृष्टि राशि प्रमाणराशि है, २५६ फलराशि है और सामान्य अवहारकाल ३२७६८ गुणित सामान्य नारक राशि १३१०७२ इच्छाराशि है । इसलिये इच्छाराशि और फलराशिका गुणा करके जो लब्ध आवे उसमें प्रमाण राशिका भाग देने पर प्रथम पृथिवीका मिथ्यादृष्टि अवहारकाल आ जाता है । यथा
३२७६८४१३१०७२४ २५६ = ८३८८६०८ प्र. पृ. मि. अ१३१०७२४१९३
१९३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org